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वो दिन हवा हुए

वो दिन हवा हुए, जब पसीना था गुलाब,आँखों में रंग थे और थे सुनहरे ख्वाब।मेरे सवाल से पहले आता था उनका जवाब,जिस काम को छूते हम बन जाता था सवाब।रौनकें लगी रहती थीं हर तरफ,रोशनी के चाशनी का माहौल हर...

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क्या सचमुच ..

क्या सचमुच कोई नेता नही चाहता कि देश तरक्की करे,लोगों को काम मिले,उनके सर पे भी छत हो,बदन पर कपडा।उनके भी बच्चे जायें स्कूल,बगिया मे खिले फूल।खेतों में अनाज हो,समंदर में देश के जहाज़ होंबीमारों को दवा...

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सभी ब्लॉगर बंधु भगिनियों को स्वतंत्रता दिवस और राखी की शुभ कामनाएँ ।

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हमारा कोलंबस सफर

हमारा कोलंबस सफरहाल ही में हम कोलंबस गये थे सुंहास और विजय अब मार्टिनबर्ग से वहाँ जाकर बस गये हैं। वे रहते हैं डेलावेअर यानि कोलंबस के एक उपनगर में। मार्टिन बर्ग के जितना बडा तो नही पर सुंदर सा घर है।...

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गणेश चतुर्थी

द्वारे बंदनवार, सजाई रंगोली,आईये गणपतिस्वागत है।ढोल, ताशे, झांज, खूब बज रहेआनंद अपारआगमनसे।पांव धोके पीऊँ, आरती उतारूंकुंकुम तिलक सुंदर सोहे।सजाया आसन, विराजे गणेश,भक्तों का उत्साह कहूँ कैसे।आचमन,स्नान...

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जब चले आते हो,

जब चले आते हो, अंधेरे में रौशनी की तरह,हर पोर मेरा, खिलता है एक कली की तरह।ज्यूं छिटक जाये अमावस को चांदनी गोरी,जगमगाते हो, हमेशा ही तुम, दिवाली की तरह।किसी लमहे-उदास को लगे, खुशी की नजर,मेरी उजडी सी...

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घुटने की शल्यक्रिया के बादघुटना बोलता है,जब उसे दुख  होता हैसाथ छूटने का, साथी जोउसके अपने थे।होता है उनको भी दुख अपने पुराने साथी से बिछडने काउसकी जगह लेने वाले नये साथी से उनकी बनती नही है अभी।नयी...

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फिर कविता

मेरी कविताएं नाचती हैं मेरे खयालों में।घूमती हैं गोल गोल मेरे चारों और,एक नई अनछुई कविता लेने लगती हा आकारउनके बीचोंबीच।जिसका हरियाली का लेहंगा, फूलों की चोली, चांद सितारे टंकी झीनी झीनी चूनर,उसके बादल...

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कब हमने सोचा था

कब हमने सोचा था कि ये पैर डगमगायेंगे,बेटे हमारे लिये फिर लाठी ले के आयेंगे।खाना बनाने से भी हम इतने थक जायेंगेसीढी बिना रेलिंग की कैसे हम उतर पायेंगे।लेकिन ये हुआ है तो अब मान भी हम जायेंगेजो जो सहारा...

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कितना कुछ

तारोंभरा आसमान निहारते हुएकितना कुछ याद आता है।परिक्षा के बाद गर्मी की छुट्टियों मेंरात छत पर सफेद चादरों वाले बिस्तर परबैठ कर बतियाना,परिक्षा खत्म होने की खुशी और साथ साथनतीजे की प्रतीक्षा और तनाववह...

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बादलों के उस पार

बादलों के उस पार कोई तो जहाँ होगा,जहाँ हमारा भी इंतजार हो रहा होगा।खूबसूरत अलग से झरने होंगे, रंगों का कोई अनोखा सा समाँ होगा।हमारे संगी साथी जो यहाँ बिछुड गये, होंगे धुंआधार बारिशोंसे धुला आसमाँ...

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बादलों के उस पार

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कितने जतन किये

कितने जतन किये तुमसे मिलने केभिजवायें अनगिनत संदेसेचिठिया पत्तर भेज के देखेहवा पखेरू के संग अपने,दुखडे कथन कियेकितने जतन किये।सखा तुम्हारे, सखियाँ मेरीदुखसे मोर जो थीं दुखियारीजा जा कर के पास...

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दर्द ओ ग़म तो

दर्दों ग़म तो लाखों हैं इस ज़माने में,ख़ुशी को लेकिन अक्सर ढूँढना ही पड़ता है ।रंजिशों की तो  यहाँ सदा बिछी है बिसातमात देने को सिकंदर ही बनना पड़ता है।टी वी अख़बार तो छापते हैं बस बुरी ख़बरेंअच्छी...

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छह महीनों के लम्बे अंतराल के बाद मैं वापस पढ़ना लिखना शुरु कर रही हूँ। पहले आप सब को पढ़ूँगी फिर कुछ लिखूँगी भी। आशा है आप सबका सहयोग मिलता रहेगा।

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ठहराव

भँवर में फँसी थी नावनाव में फँसा था पाँवअनुकूल ना थी हवामाकूल ना थी दवागर्त में था गहरा खिंचाव।घबराहट चेहरेपरधडधडाहट थी दिल मेंकैसे निकले मुश्किल सेछटपटाहट थी मन मेंदूर था किनारे का गाँव।समय चल रहा था...

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मज़ा

सुनो, सुन रहे हो नासुनो मेरा गीत जो आ जाता है होठों परसिर्फ दुम्हारे लिये ।सुनो पुकार रही हूँ मै तुम्हेंदिखाना चाहती हूँ अपने हाथों में सद्य खिला गुलाबजिसकी ताजगी आजाती है मेरे चेहरे परतुम्हें देखते...

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कितने दिनकितने दिन हो गये हैं देस छोडे हुए हैं।पडे परदेस में हैं,अजब से वेश में हैं।न चुन्नी और न आँचलपेंट शर्ट में खडे हैं।याद आती है घर की अपने दिल्ली शहर की।वहाँ के भीड भडक्केऔर लोगों के वे धक्के।वो...

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जिंदगी

हर पल तो नही पर हर घंटे लेती है इम्तहान,ये हमारी जिंदगी जो बनाना चाहती है हमें महान।पर हम साधारण से मानव कोई राम या धर्मराज तो नहीजो सफल हों हर इम्तहान में और तैयार हों अगले के लिये।हम होते हैं कभी सफल...

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रूठी कविता

मेरी कविता मुझसे रूठ गई,शब्दों की श्रुंखला टूट गई ।।शब्द नाचते से आते थेइक माला में गुँथ जाते थेरंगों गंधों से सज धज करचारों और महक जाते थेक्या हुआ कि सरगम टूट गई ।। मेरीशब्द शब्द में भाव बरसता निर्मल...

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अरे अरे अरे

आ गईं तुमआना ही था तुम्हेदेहरी पर कटोरी उलटी रख कर माँ ने कहा था,आती ही होगी वह देखना पहुँच जायेगी। वह भीगी हुई चने की दाल  और हरी मिर्चजो तोते के लिये रखी थी तुमने,वह भी तो रखनी हैउसके पिंजरेमें।और...

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चलते हीजानाहै।

कितना तो चल चुकी मैंकितना अभी चलना है।थक गये हैं पाँव लेकिनराह बीच न रुकना है।कहाँ खत्म रास्ता हैकोन सी मंजिल है मेरीराह चाहे हो कँटीलीया हो फिर चाहे पथरीलीचलते ही जाना है मुझकोकँही ना ठहरना हैखत्म हो...

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मैं प्रपंच गुड की मकखी

मैं प्रपंच गुड पर बैठी मक्खी,गुड पर बैठ बैठ इतराऊँअपने देह ताप से और लार सेपिघले गुड से मधु रस पाऊंरस पीते पीते खूब अघाऊंपता ना चले कैसे गुड मेंधंसती ही जाऊँ।।मैंखुली हवा मुझको पुकारेपर चाहूँ भी तो उड़...

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क्यूं ?

 गुज़ारे साथ में जो दिन,वो दिन कितने सुहाने थे।फिर हमें छोड कर जाने केबोलो क्या बहाने थे?पल , छिन, दिन, महीने, साल कितने सुख से बीते थेक्या मुझे ही ये लगता है तुम्हारे लिये सब रीते थे ?नहीं ऐसा नहीं...

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Boond

      Samay ki dhara bahati  hai  Nirantar abadhit.Main to usability ek choosing boondJo ho jayegi jalashay men samarpit.Ya dhara me awashoshit.Nahi janati kya hai niyati Par achcha lagata hai Samay ki...

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