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फूल खिल रहे हैं

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शिशिर के कडाके की ठंड के बाद वसंत की गुनगुनी धूप सुहावनी लग रही थी । फूल खिल रहे थे, दो दिन की बारिश के बाद पेड पौधे सद्यस्नात धुले निखरे अपने प्राकृतिक हरितिमा की विभिन्न छटाएं बिखेर रहे थे और वसंतकुंज का पार्क अपने नाम को सार्थक कर रहा था । मुझे अचानक अक्का की याद हो आई । जब वह थी तो वसंत के फाग के कितने सुंदर सुंदर मधुर मधुर गीत गाया करती थी । शास्त्रीय संगीत जो सीखा था उसने ।

ग्वालिने ब्रज का फाग उत्सव देखने बडे चाव से जा रही हैं । पर असल प्यास तो कान्हा के दर्शन की है । वे गाती हुई जा रही हैं ।
फगवा, ब्रिज देखन को चलोSSरी,
फगवेSSमे मिलेंगे कुंवर कान्ह,
जहां, बाट चलSत बोSले कगवा
फगवा.........
sई बहाSर  सकSल बन फूSSले
रसिले लाSल को लेSSअगवा
फगवाS, ब्रिज देखन को चलोSSरी ।

रास्ते में फूल खिले देख कर वे अपना मोह संवरण नही कर पातीं और फूल चुन चुन कर आंचल भर लेती हैं ।

फुलवा बीनत डारि डारि
गोकुल की सब कुवाँरि
चंद्र वदन दमकत ऐसे
भानु किशोSरीSS । फुलवा......

ले हो चलि चली कुंवारी
अपनो आंचल संवारि
आयेSSब्रिज चंद्र लाल
एरी गुजरी । फुलवा....

रास्ते में मनचले ग्वालेकृष्ण के साथ , गोपियों को छेड रहे हैं,और वे झूटा क्रोध जताते हुए कहती हैं,


छांडो छांडो छेला मोरी बैंया
दुखत मोरीनरम कलाई
कैसे तुम कैसे तुम निडर लाल
मग रोकत पराई ।
छांडो छांडो छेला   मोरी बैंयां ।

कैसे तुम महाराज
आवत ना तोको लाज
जानो ना कंसा को राज
पकर मंगाये
बाकि फिरत दुहाई ।। छांडो छांडो ...

और फिर याद आता है स्कूल का वसंत पंचमी और सरस्वती पूजा उत्सव । कैसे हम पीली साडी पहन कर स्कूल जाया करते थे । वसंत के गीतों की धूम मचती थी ।

बजती अली की शहनाई
बन फूलों के गांवों में
शिशिर झिनझिनी बांध रहा
वासंती के पावों में । बजती........

और
वसंत की बयार से ये दिगदिगंत छा गया
दुखों का अंत आ गया, कि लो वसंत आ गया
कि लो वसंत आ गया ।

कहीं पलाश सुर्ख हो के जिंदगी बिता रहा
पक्षियों का दल कहीं नवीन गीत गा रहा
लताओं के वो पीत पात झर गये जो थे सभी
नई उमर की कोंपलें नई उमर में हैं अभी । वसंत की बयार से

हवा चली नई महक को दूर तक लिये हुए
फूलों की तरह यहां पे दिल भी हैं खिलेहुए
आ गया वसंत आज गाओ दे दे तालियां
कह रही है गेहूं की यूं बालियों से बालियाँ । वसंत की बयार से

और

आया वसंत आया वसंत खिल गये फूल लद गई डाल
भौरों ने गाना शुरू किया,पत्ते हिल कर दे चले ताल
हर फूल नई पोशाक पहन जग के आंगन में झूम गया
हर भौंरा मस्ती में भर कर हर नये फूल को चूम गया ।
आया वसंत आया वसंत

14-15 साल की उम्र,वसंत और ये गीत,कैसे तो मन डोलता था तब और आज भी इस अडसठ साल की उमर में कहीं तो गुदगुदा जाता ही है ।
कवियों का नाम याद नही बडी बेइन्साफी है । पर ये मेरी प्रिय कवितायें हर वसंत में याद आती हैं । यदि किसी को कवियों के नाम याद हों तो मुझेजान कर बहुत अच्छा लगेगा।
फिलहाल एन्जॉय वसंत ।


भरतपुर पक्षी अभयारण्य

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भरतपुर पक्षी अभयारण्य

दिल्ली में रहते रहते कोई 32 वर्ष हो गये हैं, इस दौरान कितनी बार मन में खयाल आया था कि एक बार भरतपुर जरूर जाना है । पर हो ही नही पाया । इस बार तो मैनें तय ही कर लिया था कि इस सर्दी में जाना ही है भरतपुर । तो हमने फरवरी को इस पर अमल कर ही लिया ।हमारे साथ एडम भी था । सुहास का ये अमेरिकन विद्यार्थी हमारे यहां वह जब ११ वी १२ वी में पढता था तब पहली बार आया था । अब तो अमेरीकन एम्बेसी में काम करता है । अभी साउथ अफ्रीका में नियुक्त है और यहां दिल्ली काम से आया है । हमने पूछा, चलोगे भरतपुर, तो खुशी खुशी हामी भर दी । हॉटेल का बुकिंग भी कर दिया ।  तय किया था कि टैक्सी से ही जायेंगे ताकि हमारा वाहन हमारे साथ ही हो,और जरूरत पडी तो और कहीं जाने के लिये भी इस्तेमाल कर सकते हैं । भरतपुर दिल्ली  कोई 185 कि.मी. का रास्ता है ।
भरतपुर पक्षी अभयारण्य कोमहाराज केवलादेव ने बनवाया था । यहां पर हर वर्ष हजारों की संख्या में  प्रवासी पक्षी आते हैं और हमारे जैसे पर्यवेक्षक भी । इनमें से कुछ भारत के ही अन्य प्रदेशों से आते है तो कुछ विदेशों से । इसे १९८२ में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा ( नेशनल पार्क ) मिला  और १९८५ में यह विश्व की धरोहरों (नेशनल हेरिटेज) में शामिल किया गया । 

हम सुबह साढे सात बजे चल पडे ।मन में गीत गूंज रहा था पंछी बनू,उडती फिरूं,मस्त गगन में...............दो ढाई घंटे के सफर के बाद भूख लग आई तो रास्ते  रुके महारानी पेलेस नामक रेस्तराँ में । आलू पराठे का नाश्ता किया बढिया गरम गरम चाय पी और चल पडे आगे । कोई साढेबारह बजे हम भरतपुर के हमारे हॉटेल पहुंच गये
नाम है, सूर्या विलास पैलेस । सुंदर नया हॉटेल जो कि एकदम पुराने राजमहल के स्टाइल में बना हुआ । मैनेजर ने सुझाव दिया कि हम लंच करें और फिर जायें अभयारण्य । पर हमारे तो पेट के पराठे अभी हिले भी नही थे, तो हमने पहले अपने गंतव्य पर जाना ही उचित समझा । टिकिट लेकर कैमेरा से लैस हो हम पक्षी अभयारण्य में प्रवेश कर गये ।
एक गाइड कर लिया और दो साइकिल रिक्षा भी ले ली क्यूं कि पता चला कि ये अभयारण्य कोई २९ वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है । इसमें करीब १० वर्ग किलोमीटर पानी के सरोवर और दलदली इलाका है जहां पानी के पक्षी आते हैं ।  ऱिक्षा जब चल पडे तब पहले पहल कोई २-३ किलोमीटर तक कुछ दिखा ही नही ।


आगे जा कर दिखे रोज रिंग्ड पेराकीट यानि वे तोते जिनके नर गलेमें एक लाल रंग का छल्ला सा होता है । पर ये तो हमने नीमराना में भी देखे थे । एक छोटा धब्बेदार उल्लू ( स्पॉटेड आउलेट )
भी दिखा(फोटो) ।


एक जगह दिखा धब्बेदार बाज़ (स्पॉटेड ईगल)।


थोडा आगे जाने पर दिखा कि एक पेड गिरा हुआ था सूख भी गया था उसके कोटर में से गर्दन निकालता  हुआ मॉनिटरलिझार्ड  दिखा । (फोटो)



अब थोडा मज़ा आने लगा था । हमारा गाइड भी काफी जानकार था । हम आगे गये तो पानी का लम्बा सा तालाब लगा वहां बहुत सी काली बत्तखें तैर रही थीं । उनका नाम है कॉमन कूट । काफी शोर मचा रहीं थीं ।  ये दूसरे पक्षियों के साथ सर्दियों में तो सामंजस्य बठा लेती हैं पर प्रजनन के समय अपने रहने के स्थान के लिये काफी आक्रामक हो जाती हैं । ये यहां के ही पक्षी हैं । (फोटो)


आगे जा कर सफेद झक बगुले दिखे । इनकी गर्दन थो़डी लंबी होती है । गाइड ने बताया कि इनको इग्रेटस् कहते हैं ये बडे छोटे और मझौले आकार के होते हैं । बडे ईग्रेटस सुंदर और ग्रेसफुल होते हैं। इनको हेरॉन भी कहते हैं औरहोते भी हेरॉन कुल के हैं ।
 हेऱॉन की तरह ही ये उडान के समय अपनी गर्दन अंदर की और खींच कर उडते हैं । इनकी उडान भी देखनेवाली होती है और इनको दूसरे ईग्रेटस् से अलग करती है इनके सफेद रंग की वजह से ही इन्हे इग्रेटस् कहते हैं । (फोटो )

सफेद ईग्रेटस् के अलावा दूसरे हेरॉन्स भी दिखे जैसे कि ग्रे हैरॉन, पर्पल हैरॉन, पॉन्ड हेरॉन वगैरा ।


ग्रे हेरॉन पानी के आस पास रहने वाला पक्षी है यह दिखने में व्हाइट हेरॉन या लार्ज ईग्रेट जैसाही लगता है पर इसके बाहरी पर और पंख स्लेटी रंग के होते हैं । नीचे के पर बिस्किट के रंग के होते हैं यह बडा पक्षी है और करीब १०० से.मी. लंबा होता है । इसका सिर सफेद होता है पर उस पर एक काली पट्टी सी होती है । इनकी चोंच गुलाबी रंगत लिये पीले रंग की होती है ।

ग्रे हैरॉन

पर्पल हेरॉन को इसका नाम इसके पंखों की वजह से मिला है । नीले जामनी पंखों वाले इस पक्षी की चोंच लंबी और पीली होती है ।यह भी पानी का पक्षी है और मछलियां इसका आहार है । यह अफ्रीका योरोप और दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाता है ।

फिर दिखे पॉन्ड हेरॉन या  पैडी बर्ड । यह एक छोटे आकार का हेरॉन है और दक्षिणि ईरान, भारत, श्रीलंका, बांगला देश में पाया जाता है । यह सुंदर सफेद और भूरे रग के परों वाला होता है और इसके पीठ पर एक गहरे भूरे रंग की पट्टी होती है । चोंच पीली होती है । (फोटो)
     
नीलकंठ और किंगफिशर भी देखे ।  नीलकंठ को इंडियन रोलर भी कहते हैं । ये भारत में खूब पाये जाते हैं । इनके दर्शन शुभ माने जाते हैं । ये प्रवासी तो नही माने जाते पर
मौसमी बदलाव के साथ स्थलांतर करते पाये जाते हैं ।  इनके पर और सिर नीला होता है पर छाती भूरी होती है इनका कंठ नीला नही होता वरन भूरा ही होता है । (फोटो)

किंगफिशर बहुत सुंदर रंगबिरंगे परों वाला पक्षी है ।चिडिया से थोडे बडे छोटी पूंछ वाले
किंग फिशर का सिर उसके देह के हिसाब से बडा होता है । इसकी चोंच लंबी और मजबूत होती है ताकि मछली आसानी से पकड सके । इसके पंख और पीठ नीले तथा पेट नारंगी रंग का होता है । ये पानी के अंदर का अपना शिकार बखूबी देख लेता है ।
(फोटो)

और थोडे आगे जाकर दिखे पर्पल हेन मूर या जामनी जल मुर्गी । यह मझोले आकार के पक्षी खूबसूरत भूरे,नीले, बैंगनी रग के पर वाले होते हैं । नर का रंग ज्यादा चमकीला तथा मादा का थोडा हलका होता है । ये कम पानी वाले क्षेत्र में घूमते पाये जाते हैं । ये स्वभावतः शरमीले होने से हम इन्हे दूर से ही देख पाये ।

  एक जगह खूब दूर से सुर्खाब भी दिखीं इन्हें गोल्डन गीज़ कहा जाता है । इनके पंख
सुनहरे रंग के होते हैं । 'सुर्खाब के पर 'वाली कहावत याद आ गई । हमारे गाइड के पास एक अच्छी सी दूरबीन भी थी जिससे पक्षी दूर भी हो तो अच्छा व्यू मिल जाता था ।सिर्फ फोटो नही खिंच पाते थे ।

आगे जा कर देखे पेन्टेड स्टॉर्कस् । बहुत ही खूबसूरत रंगो वाले और बडे आकार प्रकार के ये प्रवासी पक्षी भरतपुर में प्रजनन के लिये आते हैं और सेप्टेंबर से मार्च तक यहीं डेरा डाले रहते हैं । जब तक कि बच्चे बडे होकर उडने लायक नही हो जाते । हमने माता पिता को बच्चों को उडने का प्रशिक्षण देते हुए देखा । इनकी पूरी की पूरी बस्तियां है यहां । (फोटो) 

ये बडे आकार प्रकार वाले पक्षी लंबी चोंच वाले होते हैं जो कि अंत में जा कर एक हुक की तरह मुड होती है जो आयबिस पक्षियों में भी पाई जाती है ।
पूर्ण वयस्क में सिर नारंगी लाल  होता है और दोनो पंखों पर काला सफेद धब्बों वाला आकर्षक  डिजाइन होता है  ये यहां दक्षिण भारत से प्रजनन के लिये आते हैं ।
इन सब पक्षियों को उनके प्राकृतिक वातावरण में देख कर बहुत आनंद आ रहा था ।  पर अब काफी थकान हो गई थी । जब कि हम तो रिक्षे पर थे । बेचारे रिक्षा चालक !वापसी पर दोनो तरफ सांप की बांबियां बनी दिखीं और एक पर एक कोब्रा भी दिखा पर वह ठंड की वजह से काफी सुस्त था और धूप  सेंकने बांबी के ऊपर आकर लेटा था ।

 एडम ने एक फोटो क्लिक किया और हम वापस गेट पर आये और हमारी टैक्सी में बैठ कर वापिस अपने होटल । फ्रेश होकर चाय पी बिस्किट खाये और टीवी चला कर चैनल चेन्ज करते रहे । थोडी देर बाद नीचे जाकर खाना खाया । बहुत बढिया खाना था । पनीर पसंदा, नान, दाल चावल और आलू गोभी । थकान के कारण नींद जल्दी आ गई ।
हमें फिर से सुबह पंछी देखने जाना था ।

बहुतसे चित्र गूगल के सौजन्य से ।

भरतपुर पक्षी-अभयारण्य-२

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३ फरवरी
सुबह उठे तैयार होकर नाश्ता किया और बालकनी में आये तो बाहर घना कोहरा छाया हुआ था । गई भैंस पानी में... अब कोहरे मे क्या पंछी देखते । एडम को बाद में फतेहपुर सीकरी भी जाना था जो कि वहां से केवल १५ कि मी दूर है । तो सोचा क्यूं ना पहले फतहपुर सीकरी कर लिया जाये और गाडी में बैठ कर चल पडे । कोहरा काफी घना था तो ड्राइवर को गाडी चलाने में भी काफी परेशानी हो रही थी । वह जब भी संभव होता किसी दूसरी गाडी के पीछे हो लेता ताकि रास्ते का पता चलता रहे । खरामा खरामा फतेहपुर सीकरी पहुंचे तो बहुत से गाइड पीछे पड गये । उनमें से एक को लेकर हम मज़ार पहुंचे दर्शन किये, धागे बांधे और काफी देर तक बाहर घूमते रहे । वहां दो आदमी बहुत सुंदर गायन वादन कर रहे थे । एक तबले पर था दूसरा हारमोनियम पर, वही गज़ल गा भी रहा था । खूब आनंद आया । (फोटो)

करीब १० साढे दस बजे जब हम वापिस जा रहे थे तो कोहरा छट चुका था । अब तो वापसी का प्रवास भी जल्दी हो गया । हम सीधे जा पहुंचे पक्षी-उद्यान । हमारा कल का गाइड जैसे हमारे लिये ही रुका था, गेट पर ही खडा मिल गया तो हमने उससे कहा कि हमारे पास कुल ३ घंटे हैं तो हमे बढिया बढिया पक्षी देखना है । तो साहब रिक्षा में बैठे और पक्षी निरीक्षण सैर शुरु ।
इस बार हम सीधे सीधे चलते गये और एक बडे से तालाब के किनारे पहुंचे जो केवलादेव मंदिर से थोडा ही आगे था । और इतने सुंदर सफेद झक पेलिकन दिखे और वे एक साथ इतने आराम से एक बोट की तरह तैर रहे थे । बहुत देर तक हम उन्हें देखते रहे इतना
सुंदर दृष्य था । पेलिकन समंदर पर तथा लेक और तालाबों पर रहते हैं । यह बडे सामाजिक पक्षी होते हैं और अधिकतर इकठ्ठे रहते और तैरते हैं । ये प्रजनन के समय भी कॉलोनी में ही रहते हैं ।  (फोटो)

हम पेलिकन्स को देख ही रहे थे कि पानी पर उछलता हुआ एक सांप सा दिखाई दिया ।
 इसका सिर्फ सिर ही दिख रहा था । गाइड ने हमें बताया कि यह सांप नही बल्कि स्नेक
बर्ड है । इसकी गर्दन लंबी होती है और यह तैरते समय सिर्फ अपना सिर ही पानी के बाहर रखता है, और बहुत तेजी से आगे बढता है । इसमें नर बहुत सुंदर काले रंग का होता है और मादा थोडे हलके रंग की । इसकी गर्दन को यह डार्ट की तरह आगे फेंक कर अपना शिकार मछली या मेंढक पकडता है इसी लिये इसको डार्टर (इन्डियन डार्टर या अमेरिकन डार्टर जिस भी जगह पाया जाता है ) भी कहते हैं ।

वहां से वापिस मुडे तो एक जगह रुक कर गाइड ने बताया कि यहां दूर से ही सही लेकिन आपको स्पून बिल (चम्मच चोंच) और आयबिस दिखेंगे । तो हम उतर कर चल पडे । गाइड अपनी दूरबीन से देखता रहा और फिर उसने अचानक दूरबीन मुझे थमा दी । देखिये वहाँ दूर सामने उस टीलेनुमा चीज़ पर स्पूनबिल और आयबिस दोनों हैं । वाकई वहां स्पून बिल दिखा और आयबिस भी । दोनों दोस्तों की तरह पास पास खडे धूप सेंक रहे थे । स्पून बिल एक लंबा बडे आकार का पक्षी है जिसकी गर्दन और पैर काले होते हैं और चोंच भी जो चम्मच की तरह आगे से गोल होती है । (फोटो)

यहां का आयबिस बडे आकार का छिछले पानी में मछली कीटक और छोटे मेंढक तथा उनके टेडपोल खाने वाला पक्षी है । इसके पंख सफेद तथा सिर और चोंच काली होती है चोच सिरे पर थोडी मुडी होती है । यह चोंच से पानी को चलाता रहता है और अपना भक्ष ढूंढता है । तब अक्सर इसका सिर भी पानी के नीचे रहता है । (फोटो)

थोडी ही दूरीपर दिखा काली गर्दन वाला स्टॉर्क । यह बडा पक्षी वैसे तो तिब्बत के टंडे प्रदेश का रहिवासी है पर प्रजनन के लिये यह नदी या तालाबों के किनारे आता है यह कभी कभी गेहूं या जौ के खेतों में भी दिखता है । उसने जब उडान भरी क्या ही सुंदर दृष्य था । यहीं कुछ पीछे एक बडा सा नर नील गाय खडा था । व्याकरण की गलती लग रही है ना ?


यहीं पर हमने भूरे पैरों वाली बत्तखें ( ग्रे लेग्ड गीज़ ) देखीं जो प्रजनन के लिये यहां सुदूर साइबेरिया से आती हैं । इनके पैरों में वाकई मोजे पहने हुए लगते हैं ।

साइबेरिया से आनेवाले क्रेन्स अब नही आते इनका आखरी जोडा पिछले साल देखा गया था पर वापसी पर वह शिकारियों का शिकार हो गया । अब वहां से आने वाले पक्षियों को राह बताने वाला कोई पक्षी नही बचा ।
यहां अक्सर खुली चोंच वाले स्टॉर्क भी दिखते हैं पर हम तो नही देख पाये ।

और देखे छोटे कोरमोरन्ट । ये मझोले आकार के पक्षी होते है ।इनका शरीर प्रजनन के समय पूरा काला रहता है । अन्य समय ये भूरे रंग के होते हैं तथा गले पर एक सपेद सा धब्बा होता है ।  ये पूरे भारत में पाये जाते हैं ।

वापसी पर एक हिरण भी दिखा (स्पॉटेड डियर) पर फोटो नही ले पाये । सुर्खाब  और गदवाल (वॉटर फाउल ) भी दिखे ।
आगे जाकर ३-४ जैकॉल (सियार) दिखे ।
मन तो बहुत था कि कुछ देर और सैर करें पर चलने का वक्त हो रहा था । दिल्ली अभी ४-५ घंटे दूर थी । एडम को कल काम पर भी जाना था । तो वापिस गेट पर आये
। गाइड और रिक्षावालों को धन्यवाद कहा मजदूरी और बक्षीश दी और गाडी में बैठे वापसी के लिये । रात के साढे आठ बजे  पहुंचे घर । खाना रास्ते में महारानी पैलेस मे खा लिया था तो और कुछ करना नही था ।  आप को कैसे लगी हमारी भरतपुर की सैर ?मुझे तो बडा मज़ा आया ।

बहुतसे चित्र गूगल के सौजन्य से ।


Article 1

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कमनीय छवि वाली राधे, पिचकारी से रंग उडावत है,
सखियन के संग ठिठोरी करे, कान्हा से आंख चुरावत है .

आंधी सी चली है गुलालन की, सब रंग भरे मन भावत है,
कान्हा जो करे अब बरजोरी, सखि राधे मान दिखावत है ।

सब  गोपी ग्वाल उछाह भरे,  गा नाच के रंग जमावत है
मन रंगीला, तन रंग गीला, इस होरी पे जिय कछु गावत है ।

होरी की अगिनी, जलन सभी, मन के गुस्सा भी बुझावत है
इस होरी पे जाये जिया वारी, रंग के संग प्रेम लगावत है ।

जा प्रेम सरित में डूब रहो, अब कृष्ण कृष्ण मन गावत है
सब कृष्ण रंग में नहाय लिये, कछु और कहां सुहावत है ।

आदमी खोया कहां है ?

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इक आदमी को ढूंढते हैं
ये आदमी खोया कहां है

ढूंढा उसे हर रास्ते पर
हर गांव में और हर नगर
दौड दौड ठहर ठहर
आया कहीं न नज़र मगर
सोचते ही रहे हम फिर
आदमी खोया कहां है ।

ढूंढा उसे फिर झोपडों में
चिरकुटों में चीथडों में
फ्लेटों में अट्टालिका में
बंगलों मे, बाडियों में
था ही नही, मिलता कहां
वो आदमी खोया कहां है ।

हाटों में और बाज़ारों में
मॉलों में और होटलों में
ढाबों में और रेस्तरॉं में
गिलासों में बोतलों में
मिला नही फिर मिलता कैसे
वो आदमी खोया जहां है ।

मुफलिसों में, अमीरों मे,
जाहिलों, विद्वज्जनों मे
दुर्जनों में, सज्जनों मे
देश के सारे जनों में
ढूंढते फिरते रहे पर
आदमी पाया कहां है ।

सुनामी में, तूफानों में,
बाढ में भी अकालों में
जिंदगी में और कालों में
उत्सवों मे, हादसों में,
काम कर के थक गया जो
नाम से कतरा गया जो
वो आदमी सोया यहां है
आदमी खोया कहां है ।



क्षणिकाएं

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क्षणिकाएं

उगता सा कुछ दिल के अंदर
ये मेरी चाह है
या तुम्हारी चाहत ।

आंखों में नींद है ना चैन
किरचें चुभती हैं
आंसुओं की ।

धूप के छोटे छोटे टुकडे
बिस्तर पर फैले,
यादों के साये ।

चाय के साथ कमरे में आती तुम,
चेहरे पे धूप छांव
आती जाती ।


कुछ ना कहो, छलक जायेंगी
यूं ही तैरती सी लगती हैं
ये पनीली आंखें ।

.................................................................


देह झुलसाती कडकती धूप
याद आता है
पापा का गुस्सा ।


बरसता मेह, भीगती धरती
पानी के परनाले
मां की आंखें ।

पुराने कंबल के भीतर लगी
पुरानी चादर, गर्माहट
माँ के आंचल सी ।


गर्म मौसम में ठंडी हवा
खस में भीगी
दीदी का प्यार


आईस कैंडी सा सुकून देता
ठंडक पहुंचाता
भैया का दुलार


संध्या रंग गालों पर बिखराती
मन को गुदगुदाती
पिया मनुहार

ये कैसा समाज ?

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ये कैसा समाज ?

क्या हम दरिंदों का और कायरों का समाज बना रहे हैं
हम में से कुछ तो दानव हो ही गये हैं इसमें कोई संदेह नही पर बचे हुए क्यूं कायरता को अपना रहे हैं ।  क्या हम तब तक मुंह फेरते रहेंगे जब तक हमारी बहू बेटी पर ये ना बीते । सोचिये तब कौन आयेगा हमारी मदद करने । देख ही रहे हैं कि हमारे बच्चे भी अब सुरक्षित नही हैं । जो हमारे तथाकथित सहायक हैं, रक्षण कर्ता हैं । वही भक्षकों के सहायक बन रहे हैं या फिर खुद ही भक्षक
जो नेता मंत्री हैं वही हमारा शोषण कररहे है । समय आ गया है विद्रोह का, विरोध का, लडाई का, अपनी बात दो टूक कहने का वरना यह समाज इन्सानों का नही दरिंदों और कायरों का बन जायेगा ।

देखते हैं कि हम क्या कर सकते हैं ऐसे में ।

-बसों में, मेट्रो में, रेल्वे में छे़ड छाड देखते ही लडकी के साथ सब मिल कर विरोधी स्वर बुलंद करें ।
अगला मारपीट पर उतर आये तो उसे समुचित उत्तर दें । 

-रोता बच्चा किसी किशोर या वयस्क के साथ देखें तो समुचित पूछताछ करें, कुछ
गडबड लगे तो पुलिस में रिपोर्ट करें ।

चुनाव के समय वोट मांगने आये नेताओं से सवाल करें कि क्या  उनका नाम किसी
भ्रष्ट आचरण के केस से जुडा है । जनता व खास कर स्त्रियों की सुरक्षा के लिये वे क्या कदम उठा रहे हैं ।

-क्या उनके राज में महिला सुधार गृहों का व्यवस्थापन साफ सुथरा है, या वहां उनका शोषण हो रहा है । क्या उनकी पार्टी भ्रष्ट नेताओं को टिकट दे रही है ।   

-बाल सुधार गृहों में बच्चों के शिक्षा तथा विकास के लिये क्या प्रयत्न किये जा रहे हैं । क्या वहां के अधिकारियों के आचरण पर नजर रखी जा रही है, क्या उनको समय समय पर बदला जाता है ।

- अपने घरों में काम करने वाले स्त्री पुरुषों को समझायें कि कंबल, साडी या १०० रु. के नोट के बदले वोट ना दें ।
-पुलिस के मदद ना करने पर अखबार के एडिटर को पत्र लिखें उसकी प्रति गृहमंत्रालय को भेजें । यदि आप ब्लॉगर हैं, अपने ब्ल़ॉग पर भी इस बारे में लिखें ।

मीडीया को जिम्मेवार भी हम बना सकते हैं, उनसे पूछ सकते हैं कि क्यूं वह किसी भी केस में सिर्फ कुछ दिन ढोल पीट कर चुप हो जाते हैं। क्यूं उसको आखिर तक नही ले जाते । उनमें, उनकी कलम में, ताकत हैं कि वे सरकारों को सही कदम उठाने को मजबूर करें । फिर क्यूं वे उसका सही इस्तेमाल नही करते ।

क्या हुआ निर्भया के केस का, उसके बाद भी लगातार इतने बलात्कार क्यूं हो रहे हैं ।
पुलिस अपनी जिम्मेवारी क्यूं नही निभाती ।

अपने गली मुहल्ले कॉलोनी में जागरूकता समूह बनाये

य़दि हम सब मिल कर प्रयत्न करें तो संभव है यह भी करना ।

चंद शेर

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जिसके खयाल ही से रूह काँपती है मेरी,
वही दे रहा है है दस्तक मेरे किवाड पे ।

दीवारों के कान होते हैं कहावत ही है लैकिन
लगता कि उगे कान हैं, आंगन की बाड पे ।

हम नासमझ ही सही, समझदार भी देखें
जिनकी समझ के चर्चे हैं दुष्मन के द्वार पे ।

अपना समझ के जिनको गले से लगा लिया
वही ला रहे हैं खटमल पलंग की निवाड पे ।

बेहतर लिखा था जिसने, वो तो इग्नोर होगया
ईनाम बट रहे हैं उनके कबाड पे ।

कानून व्यवस्था जो सरकार ना चलाय
गुंडा येराज, जायें अब किसके द्वार पे ।

अब तो जाओ चेत, न रहो नींद में लोगों
चूके तो भुने जाओगे चनों की भाड पे ।










तांडव

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शिव ने बिखरा दी हैं जटायें
आंख तीसरी खोली है
माथे पर गंगा है उबलती
पांवों में बांधी बिजली है
अब ये नहीं हैं रुकने वाले
जाग जरा तू, ए मानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।

घर,मैदान खेत और बगिया
जंगल बस्ती सब जलमय
इसको ही शायद कहते हैं
गीता और पुराण प्रलय
सब इसके कोप भाजन हैं
कैसा मच रहा विप्लव
देख कैसे हो रहा तांडव ।

ये परिणाम है अति दोहन का
धरती का या आसमान का
नदिया, जंगल, पर्वत, जन का
कुछ लोगों के लोभी मन का
प्रकृति जो बन रही है दानव
देख कैसे हो रहा तांडव ।

सम्हल जा ये तो है शुरुवात
ध्यान में रखले अब ये बात
जन सुरक्षा और जन जीवन
प्रकृति वर्धन, जल संवर्धन
वृक्षारोपण, नदिया शोधन
संसाधन का समान वितरण
इसीसे प्रसन्न होंगे देव
और थम जायेगा तांडव ।

जगरात

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आओ जगरात करें
कोई तो बात करें
हाथ ले हाथ, करें
बैठ के साथ करें
लोगों की, अपनी भी
बात इक साथ करें
आओ जगरात करें ।

बात तारों की करें
इन बहारों की करें
अपने प्यारों की करें
जीत हारों की करें
सच्चे यारों की करें
राजदारों की करें
इक मुलाकात करें
आओ जगरात करें ।

पक्के वादों की करें
कच्चे धागों की करे
अपनी यादों की करें
कुछ इरादों की करें
बंद साजों की करे
खुले राजों की करें
भेंट सौगात करें
आओ जगरात करें ।

बात सपनों की करें
अपने अपनों की करे
धडकनों की भी करें
बचपनों की भी करें
बहते नयनों की करे
मीठे बयनों की करे
हंसी के साथ करें
आओ जगरात करें ।

भोर जो होने लगे
रात जब खोने लगे
किरणों में नहा लें हम
खुशियों को पा लें हम
मन को बस साफ करें
कही सुनी माफ करे
दोनों इक साथ करें

आओ जगरात करें ।

नेचुरल ब्रिज

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हाल ही में हम बस इत्तफाक से एक खूबसूरत जगह पर पहुंच गये कोई जाने का प्लान नही था । हम तो कुसुम ताई से मिलने ब्लेक्सबर्ग गये थे । वे अब अमरीका के पश्चिमी किनारे पर बसने जा रही हैं। बेटा वहां पोर्टलेन्ड में है तो अब इस उम्र में बेटे के पास रहना चाहते हैं वेऔर अरुण रावदोनो। वहां से वापिस आ रहे थे मार्टिन्स बर्ग सुहास के यहां । रास्ते में एक रेस्ट एरिआ में रुके तो मैने कुछ प्रेक्षणीय स्थलों की जानकारी के ब्रोशर उठालिये ।
विजय,सुहास के पति कार चला रहे थे। अचानकहमने देखा कि  अगला एक्झिट नेचुरल ब्रिज का है तो मैने कहा,"अरे नेचुरल ब्रिज",  तो सुहास ने एकाएक विजय से कहा लेलो एक्झिट, जल्दी । विजय ने एक्जिट तो लिया पर भुनभुनाये,"ऐसे कोई एक्जिट लेता है क्या " और इस तरह हम इस खूबसूरत जगह पर आये । एक्जिट से ज्यादा दूर नही थी ये जगह बस 4-5मिनिट के ड्राइव पर ही थी । आप भी जा सकते हैं I -81 से नेचुरल ब्रिज का एक्जिट लेकर ।

नेचुरल ब्रिज एक भूगर्भशास्त्रीय आश्चर्य है जो जेम्स नदी के ब्लू रिज पहाड के खोदने से बना है । ये जो एक पुल सा दिखाई देता है वह वास्तव में एक गुफा या सुरंग की छत है,  गुफा के अवशेष के रूप में यही बचा है । यह कोई २१५ फीट ऊंचा और ९० फीट चौडा है । इसे वर्जीनिया के प्राकृतिक ऐतिहासिक स्थल का दर्जा मिला है ।

कहते हैं यह यहां के मूल निवासियों (मोनेकन कबीला ) का श्रध्दास्थान है उनके पोहाटन कबीले पर विजय का प्रतीक । यह श्वेत वर्णीयों के यहां आने से पहले की बात है ।

ऐसा भी माना जाता है कि अमरीकी के प्रथम राष्ट्रपती जॉर्ज वाशिंगटन यहां सर्वेयर के रूप में आये थे और उन्होने ब्रिज के एक पत्थर पर अपना नाम उकेरा था । उनके नाम के आद्याक्षर वाला पत्थर यहां मिला भी था । Vdo 1नीचे दी हुई लिंक क्लिक करें
थॉमस जेफर्सन  अमरीका के तीसरे राष्ट्रपती ने १७७४ में किंग जॉर्ज IIIसे २० शिलिंग में  १५० वर्गफीट जमीन खरीदी थी जिसमें यह नेचुरल ब्रिज भी शामिल था । उन्होने ही इस जगह को साफ सुथरा करवा कर एक केबिन बनाया जहां वे तफरीह के लिये आया करते थे । कहते हैं वे अपना पत्थर इस ब्रिज तक उछाल पाये थे ।

आज इस जगह को काफी विकसित किया गया है । इसका टिकिट २१ $ प्रति व्यक्ति लगता है इसमें हम  एक खूबसूरत ट्रेल पर चलने का सुखद अनुभव ले सकते हैं और नेचुरल ब्रिज, सेडार क्रीक,लेस फॉल्स तथा मोनेकन गांव देख सकते हैं । २८ डॉलर का टिकिट लेने पर केवर्न और बटर फ्लाय गार्डन भी देख सकते हैं पर चलना काफी पडता है । नीचे दी हुई लिंक क्लिक करें
हम तो केवल नेचुरल ब्रिज और सेडार क्रीक ही देख पाये और चलने की हिम्मत नही थी  । नेचुरल पुल की सुन्दरता का मज़ा आप भी लें ।







उदासी

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अवि-वर्षा की शादी को इस साल १० जुलै को २५  वर्ष पूरे
हुए । अवि (अवनींद्र) मेरा भांजा है । मैं उनके फेस बुक पर
उनके लिये बधाई मेसेज छोडना चाहती थी । वहां अवि के
अकेलेपन को लेकर लिखे हुए कुछ शब्द देख कर मन तो कैसा
कैसा हो गया । अवि अपना बिझिनेस चलाता है और वर्षा दूसरे
शहर में गायनेकोलॉजिस्ट है । घर-संसार चलाना है, दोनो
अपनी अपनी जगह रह कर चला रहे हैं ।

अवि की मनस्थिति कुछ इन शब्दों में बयां हो सकती है ।



अकेलापनमेरा मुझसे,सवालअक्सर ये करता है,
कि अब घर जाना होगाकब, उदासी घेर लेती है ।

मै अपनी तनहाई में अक्सर खोया रहता हूँ
तुम्हें जब याद करता हूं, उदासी घेर लेती है .

इस मेरी मजबूरी में तुम्हारा साथ ना होता
सोच कर कैसे मैं जीता, उदासी घेर लेती है ।

वो बच्चों की सफलता पर तुम्हारे साथ ना होना
और उनका रूठना मुझसे, उदासी घेर लेती है ।

मिलना दो दिनों का और लंबी सी जुदाई फिर
वापसी पर हमेशा ये उदासी घेर लेती है ।

जिंदगी क्या यही है और ऐसी ही आगे है क्या चलना  
इन खयालों के आते ही उदासी घेर लेती है ।

और जब कभी अचानक से तुम आकर के मिलती हो
बादलों में उदासी के, ऱोशनी झिलमिलाती है ।

जिंदगी जो मिली है हँस के ही इसको निभा लेंगे ,
जियें और मुस्कुरायें तो उदासी भाग जाती है ।



बधाई अवि और वर्षा
तुम साथ साथ रहो हमेशा ।




सुबह

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स्वर्णिम प्रभात में धीरे धीरे घुलता अंधकार
पक्षियों का कलरव, गमले में खिलता गुलाब
नल में पानी की आवाज
गैस पेपत्ती के इंतजार मेखौलता पानी,
कप में चम्मच की टुनटुन
दरवाजे की घंटी का संगीत
दूधवाला, अखबार
हाथ में चाय का कप
बाहरछज्जे पर एक कुर्सी
उस पर  मेरा बैठना
और....

सुबह सार्थक हो जाती है ।




चित्र गूगल से साभार ।

बदले बदले मिजाज़ मौसम के

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बदले बदले मिजाज़ मौसम के
बदला बदला है नूर बारिश का
सतरा प्रतिशत है हो गई ज्यादा
सबके अनुमानों को बता के धता ।

कभी होती थी पिया सी प्यारी
अब सिरिअल-किलर सी लगती है
लग रहा है की गीली, गीली, सिली
कोई एक आग सी सुलगती है ।

कहते हैं कि बुखार धरती का
कुछ ज्यादा ही हो गया है अब
हिम शिलाएं पिघल रही देखो
किंतु मौसम उबल रहा है अब ।

गर्मी से आदमी भडकते हैं
सोचते हैं न कुछ समझते हैं
बिन किसी बात के भडकते हैं
बसों में रास्तों में लडते हैं ।

काश इस गुस्से की दिशा बदले
गुस्सा इकजुट इस तरह उबले
करे इस दानवी व्यवस्था पर
जोर का इक प्रहार और बदले ।

फिर उगेगा इक नया सूरज
फिर मिलेगी सच में आजादी
फिर स्वतंत्रता का दिन मनायेगे
सही माने में जश्ने आजादी ।




ओ सिंह , उठो

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 सिंह , उठो, जवाब दो दुष्मन को ।
त्यजो दुविधा, कि क्या करूं, कैसे करूं ?
वही करो जो करना चाहिये , जो शास्त्र कहते हैं ।
वही करो जो ईश्वर ने कहा है, गुरू ने, संतों ने कहा है ।
वैसे ही करो जो इन परिस्थितियों में उचित है जैसा शास्त्र कहते हैं ।
मत भूलो कि देश की रक्षा ही तुम्हारा धर्म है ।

डरो नही युध्द करो, युध्द अनिवार्यता है जीवन की ।
यह युध्द तुम पर, हम पर लादा जा रहा है । देश के प्रति कर्तव्य है तुम्हारा कि उठो और युध्द करो ।

आत्मरक्षण अनिवार्यता है । युध्द में जीतोगे तो सत्ता पाओगे और नाम भी ।
नही तो तुम्हारे मित्र और शत्रु दोनों तुम्हारी निदा करेंगे, इतिहास भी तुम्हें माफ नही करेगा ।
तुम्हारे कायरता की गाथा नमूद करेगा ।

महाभारत युध्द में कम विनाश नही हुआ फिर भी तो हम आज संख्या में बुलंद हैं ।
इस संख्या की लाज रखो । युध्द करो ।
युध्द करो ताकि जनता समझे स्वतंत्रता का महत्व ।

अभी कोई कृष्ण नही आने वाले तुम्हारे लिये, ये जनता ही है तुम्हारे कृष्ण ।


झंझावात

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झंझावात की तरह आ कर लपेट ले वह मुझे
उठाले हवा में ऊपर
पांव तले ना रहे जमीं 
जकड ले बाहों में कस कऱ
नजर से बांधे नजर
अधरों से अधर
सांस से खींच ले सांस
गले में अटके कोई फांस
क्या हो रहा है ये समझने से पहले
ले ले कब्जे में मन ओर प्राण
उसकी बाहों में  मै पडी रहूं

नीरव, निश्चल, निष्प्राण ।

मंगल आगमन गजानन को

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मंगल आगमन गजानन को
अब से प्रभु घर में विराजत है।
मणि से नैना और सूंड सरल,
मस्तक पर मुकुट सजावत है।

पाशांकुश, मोदक कर धरि के
फिर वरद हस्त से रिझावत है
गणपति सबके हिय भाये अति
दूब, जवा पुष्प से सजावत है।

आँखन से भक्तको जतन करे
फेरि सूंड के पीर हरावत है।
कानन से करे ऐसो वात
सब विघन को दूर उडावत है।

भगतन के हित व्है दयावान
टूटे दन्त से बैरी गिरावत है.
हमरे अपराध रहे कोटिन,
सब पेट में डारि भुलावत है.

सारि माया मोह के बटै डोरि
कोई बिघनराज जब ध्यावत है.
शरण गये त्यागि कबहु न प्रभु
गणराज सभी को अपनावत है ।



चंद शेर -२

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इस दिल से निकलेंगी दुआएं,चाहे तुम रूठे रहो
हम ना छोडेंगे मनाना, चाहे तुम झूटे कहो।

हम को तो बस आप ही हैं इस बडे संसार में
बिन सहारे के रहे तो,दिल के टूटे ही कहो।

जिनके भरोसे रह रही है जनता भारत देश में
वही छीनें उसकासब कुछ, तो लोग लुटे ही कहो।

लडकियां हों आधुनिक या देसी हों परिधान में,
ऱास्ते सुनसान हों तो, गुंडे छूटे ही  कहो।

कैसे तो निर्लज हैं हम लोग और नेता सभी
लुटती इज्जत नारियों की, कहें खूंटे से रहो।

बच्चे तक तो नही बचते हैं इनकी हवस से अब
कुचला बचपन, मसला यौवन, (इन्हे)भाग के फूटे कहो।

लडकियों अब काम नही चलना हो कर के छुई मुई
अपनी हिम्मत अपनी ताकत बढाने में जुटे रहो।

अब हमे ही सोचना होगा सुधार के लिये
स्कूल हो या घर हो अपना नीति के बूटे लहो।




श्राध्द

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श्राध्द शब्द का उद्गम श्रध्दा शब्द से हुआ है । श्रध्दा अर्थात् मानना या विश्वास या आस्था। बीता पखवाडा (१५ दिन), भाद्रपद माह का कृष्णपक्ष, पितृपक्ष कहलाता है। इन दिनों हम अपने दिवंगत पितरों यानि पूर्वजों को याद करते हैं उनकी अभ्यर्थना करते हैं, उन्हें  पिंडदान और तिलांजली देते हैं और उनसे आशिर्वाद प्राप्त करते हैं। हमारी श्रध्दा है कि यह सब करने से हमारे पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। हमारा धर्म इसलिये विशेष है कि वह हमें जीवित ही नही मृत व्यक्तियों का भी आदर सम्मान करना सिखाता है।
 इन पंद्रह दिनों में हम तिथि विशेष पर अपने पुरखों का, जिस दिन उनका देहावसान हुआ हो,श्राध्द करते हैं। यदि किसी कारण वश ऐसा न कर पायें तो अमावास्या के दिन, जिसे सर्वपित्री अमावास्या कहते हैं, हम श्राध्द कर सकते हैं। य़दि किसी महिला की मृत्यु सके पति से पहले होती है तो उसका श्राध्द अविधवा नवमी को कर सकते हैं। घात चतुर्दशी के दिन अपघाती मृत्यु या युध्द में जिनकी मृत्यु होती है उनका श्राध्द करते हैं। 
सर्वपित्री को किया गया श्राध्द गया में किये गये श्राध्द के जितना ही पुण्य कारक होता है। श्राध्द व्यक्ति के मृत्युदिन पर हर वर्ष भी किया जाता है, यदि किसी कारणवश ना कर पायें तो सर्वपित्री अमावास्या इसके लिये सही दिवस है।

श्राध्द पुत्र, पौत्र या पितृकुल के अन्य पुरुष कुटुंबीय द्वारा किया जाता है। यह पिछली या अगली (भगवान न करे) तीन पीढियों तक के लिये ही किया जाता है। यदि कुल में अन्य पुरुष ना हो तो दौहित्र या नाती भी श्राध्द करने का अधिकारी है। श्राध्द के खाने में चांवल की खीर और उडद के बडे आवश्यक होते हैं। प्रसाद के तौर पर गंगा जमनी लड्डू बांटे जाते हैं जो बेसन और सूजी को मिला कर बनाये जाते हैं। श्राध्द कराने वाले ब्राह्मण या पुरोहित ( ये अलग ब्राह्मण होते हैं जो यही कार्य कराते हैं) को खाना खिलाया जाता है और दक्षिणा दी जाती है।
श्राध्द करने वाले पुरुष को नदी के तीर पर खुले बदन केवल धोती पहन कर यह कार्य करना होता है क्यूं कि जनेऊ की स्थति को कई बार बदला जाता है। कुश की अंगूठी पहन कर अपने देवों और पुरखों का आवाहन किया जाता है। फिर इनकी पूजा करने के बाद इन्हें पिंडदान किया जाता है। पिंड याने पके चावल, काले तिल और घी को मिला कर बनाये गये मुठिये। इन्हे फिर कौओं को खिला दिया जाता है। इन कौओं में ही हमारे पूर्वजों की आत्मा है यही समझा जाता है। पहले के समय में अधिकतर बस्तियाँ नदी के तट पर ही बसती थीं नित्य के कार्य, पानी भरना नहाना कपडे धोना, सब नदी पर ही होते थे तो नदी तट पर जा कर श्राध्द करना भी सुविधाजनक था।गाँव गाँव में पुरोहित भी होते थे शुभ कर्मों के लिये भी और  तेरही, श्राध्द आदि के लिये भी।

 आज के जमाने में यह सब करने का किसी के पास समय नही होता पर श्रध्दा तो हमारे मन में होती ही है। तो मंदिर में हमारे पुरखों के नाम प्रसाद चढा कर बांटने से या किसी जरूरत मंद को खाना खिलाने से भी हमें उतनी ही शांति मिलती है जितनी श्राध्द के कर्मकांड करने से। मेरे पिताजी इसी तरह श्राध्द करते थे। इसमें लडके लडकियों का भेद भी नही हो सकता क्यूं कि दोनों ही अपने पुरखों के उतने ही अंश हैं। मेरी बडी ननद जब भी चाय बनाती है चाय का कप रख कर अपने माँ पिताजी को याद करके दोनों को चाय पीने के लिये बुलाती है, क्यूं कि दोनों को चाय बहुत पसंद थी। बाद मे वह चाय स्वयं पीती है इस तरह वह रोज ही अपने माता पिता का श्राध्द कर लेती है । आखिर श्रध्दा का प्रश्न है। समय के हिसाब से हमें इन रीति रिवाजों को अपने स्वयं के लिये बदलना होगा। मेरी सासूजी की इच्छा थी कि हम श्राध्द करने के लिये वे पैसे किसी संस्था को दान करें, तो हम वही करते हैं।
 श्रध्दा सिर्फ अपने पुरखों के लिये नही होती वरन हमारे गुरु, हमारे आदर्श, हमारे मार्ग दर्शक के लिये भी होती है।हम इन सब लोगों के प्रति भी अपनी श्रध्दा इस सर्वपित्री अमावस के दिन प्रकट कर सकते हैं नेता जी के लिये सैनिकों के फंड में चंदा दे कर। गांधी जी के आदर में किसी गरीब कुटुंब की मदद कर के। नेहरू जी, शास्त्री जी के लिये प्रधान मंत्री कोश में चंदा देकर या इसी तरह का कोई कार्य कर के। इससे हमारे धर्म की भी रक्षा होगी और हमारा  समय भी बचेगा।

दुर्गा स्तुति

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नमस्ते गिरि नन्दिनि,
महिषासुर मर्दिनि
शुंभ निशुंभ क्रंदिनि,
मधु,कैटभ गंजिनि।

दक्ष-यज्ञ ध्वंसिनि,
कर्पूर गौरं तोषिणि
समस्त भव-भय हारिणि
संसार सागर तारिणि

शक्ति भक्ति स्वरूपिणि,
भक्त संकट वारिणि,
समस्त जग तव पुत्रवत्
हे मातु सुख प्रदायिनि।

तव चरणं शरणं जगत,
हे मातु अभय दायिनि,
शक्ति, देश रक्षा हेतु
दे मातु स्वानंदिनि।

फोटो गूगल के सौजन्य से।



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