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सही मतलब

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ए काश,आजादी का हम सही मतलब समझ जायें,
हकों के साथ फर्जों को अदा करते चले जायें,
मुसीबत में कोई जो हो, मदद को उसकी बढ आयें,
तभी ये जश्ने-आज़ादी सही माने में मन पाये।

सभी को शुभ स्वातंत्र्य दिन।






चित्र गूगल से शाभार

चलते चलो रे

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इस जून में हमारा प्रोग्राम बना पोर्टलैन्ड (ओरेगन) और सैनहोजे ( केलिफोरनिया) घूमने का.
असल में प्रोग्राम तो पिछले साल ही बन गया था पर हमारे साथियों ने ऐन वक्त पर पीछेहाट कर ली।
 इस बार सुहास विजय को पनामा जाना पडा एडम एमी के पास, उनके बेटे की देख भाल के लिये और प्रकाश और जयश्री को मुंबई जाना जरूरी था। हमारा कार्यक्रम पहले से ही सैनहोजे जाने का था।
कुसुमताई इनकी बडी बहन जो पहले ब्लैक्सबर्ग, वर्जिनिया में रहत थीं पिछले नवंबर में पोर्टलैन्ड मं रहने चली गईं थीं। इस उम्र मे अब सब अपनों के करीब रहना चाहते हैं। बेटा अजित वहां है तो इन्होने भी वहीं एक घर ले लिया। जाते ही उनका हाथ फ्रेक्चर हो गया जिसे ठीक होते होते कोई २ महीने लग गये। उनसे मिलना भी था और उनका नया घर भी देखना था। तो वेस्ट कोस्ट जाते हुए उनसे मिलने का भी तय किया।
सैनहोजे में मेरे बडे भाई की बेटी, शाश्वती और मझले भाई का बेटा मकरंद रहता है। दोनों भाभियां भी वहां आईं हुईं हैं तो वहां का भी प्रोग्राम तो पिछले साल से ही बन गया था। सोचा कि वहीं से ग्रेंड कैनियन और लासवेगास की सैर भी कर लेंगे। प्रोग्राम तो सबके साथ ही बना था पर हो नही पाया, तो इस बार हम दोनों ने ही जाने का फैसला किया।
उस हिसाब से हम लोग १८ जून को चल दिये । हमारी उडान शार्लट एयरपोर्ट से थी तो राजू हमें वहां छोड आया। तूफान की वजह से हमारी उडान करीब एक घंटा देर से उडी पर हमने समय रहते अजित को बता दिया था। सिवा देरी के बाकी उडान ठीक ठाक रही और हम पोर्टलैन्ड पहुंच गये। अजित और उसकी पत्नी सांड्रा में लेने आये थे और उन्होनें हमें रात के करीब दस बजे कुसुमताई के घर पहुंचा दिया। शार्लट में खाया तो था पर  घर जाते ही  फिर भूक लग आई। खाना खाया और सो गये।
दूसरे दिन सुबह उठे और चाय लेकर बाहर पीछे के यार्ड में टेबल लगा था वहीं बैठ गये।  कुसुम ताई के घर का यहसबसे सुंदर स्थान है। हरा भरा लॉन गुलाब के पौधे जिसमे फूल ज्यादा नही थे, पर सबसे सुंदर था एक नन्हासा तालाब और झरना ।  इस तालाब मे खिले थे सुंदर लाल रंग के कमल। देख कर तबियत खुश हो गई। फिर तो हम जितने दिन वहां रहे चाय से लेकर नाश्ते तक वहीं जमे रहते। आप भी उठाइये इसका आनंद। (विडियो water spring lotuses)
कुसुम ताई ने अपने हाथ की चोट की वजह से यहां ज्यादा गाडी नही चली थी और जीजाजी अरुण काम से मैडिसन, विस्कॉन्सिन में थे तो हम बस एक बार रेस्टॉरेन्ट में खाना खाने गये एक बार अजित के घर खाने पर गये, और गये रोज गार्डन। अजित की पत्नी सांड्रा अमेरिकन है पर उसने एकदम भारतीय खाना खिलाकर हमें चौंका दिया। रोटी, आलू मटर की सब्जी, सलाद, मुठिया और हलवा। हलवा कुसुम ताई के यहां से हम ले गये थे।
पोर्टलैंड को गुलाबों का शहर कहते हैं यहां की रोज गार्डन बहुत प्रसिध्द है। पोर्टलैन्ड ओरेगन प्रांत का सबसे बडा शहर है, यह कोलंबिया और वेलमाट्टा नामक नदियों के संगम पर बसा है। कुसुमताई का घर विल्सनविल रोड पर है। यहां से आते जाते वेलमाट्टा नदी पडती है। पुल तो बढिया बने हुए हैं। हम पोर्टलैंड पहले भी आये थे जब अलास्का गये थे। घूमना तो हमारा तब हो ही गया था तो इस बार कुसुम ताई के साथ समय बिताने का प्लान
था। पर अरुणराव के आने से दो दिन पहले हम गये रोज गार्डन। यह स्टेट पार्क का ही हिस्सा है। इसे इंटरनेशनल रोज़ टेस्टिंग गार्डन कहते हैं। वैसे और बहुत से गुलाबों के बाग हैं यहाँ। ताई बता रहीं थीं कि महीना पहले वे किसी और को लेकर रोज गार्डन गईं थींतब वहां बिलकुल फूल नही थे। लेकिन हमारे पहुंचते ही हमने देखा कि वहां हजारों गुलाब के फूल खिल ही नही रहेथे बल्किखिलखिला रहे हैं। इतनी गाडियां थीं कि पार्किंग की जगह ही नही मिली। कुसुम ताई ने कहा कि तुम लोग तो घूम आओ मै देखती हूँ चक्कर लगाती हूँ यदि पार्किंग मिल गई तो आ जाऊँगी। तो हम दोनो तो सीढियाँ उतर के गार्डन में दाखिल हो गये। लाल, पीले, नारंगी, सफेद, मैजेन्टा, जामुनी, हर रंग के गुलाब वहां मौजूद थे। जहां तक नज़र जाये गुलाब ही गुलाब। हमने बहुत सी तस्वीरें खींची फूलों की, देखिये आप भी।  ( विडियो रोज गार्डन)।
कुसुम ताई को अन्त तक पार्किंग मिली ही नही। ज्यादा विस्तृत वर्णन के लिये हमारी अलास्का ट्रिप पर देख सकते हैं क्यूं कि अलास्का जाते हुए हम रुके थे पोर्टलैन्ड। वहां हमेशा कुछ ना कुछ चलता ही  रहता है हमने देखा कि गुब्बारों से की बडी ही सुंदर कमान सी बनी थी। बच्चों के लिये खासा आकर्षण। ( विडियो )
दो दिन बाद ही जब अरुण राव आ गये तो उन्होने हम से पूछा कि कहाँ चलोगे मल्टिनोमा फॉल्स या पैसिफिक,तो हमने पैसिफिक कोस्ट जाने के लिये कहा। वह हमने देखा नही था।हमने फिर एस्टोरिया और कैनन बीच जाने का तय किया।पहले हम गये कैनन बीच। यह पोर्टलैन्ड शहर से कोई ९० मील की दूरी पर है। कोई डेढ घंटा कार का सफर कर के हम पहुंचे कैनन बीच। यहां इकोला स्टेट पार्क में हमने पहले पेट पूजा की फिर घूमें। इकोला स्टेट पार्क और हे-स्टैक रॉक इस जगह के मुख्य आकर्षण हैं। इकोला का अर्थ यहां के मूल निवासियों की भाषा में है व्हेल। इसी से इकोला पार्क। यहां से आप व्हेल वॉचिंग के लिये क्रूज़ ले सकते हैं।( Video)
यहां से हमने हैस्टेक रॉक की तस्वीरें लीं।  है-स्टैक यानि चारे का ढेर। वैसा सा ही दिखने वाला यह पत्थर समुद्री सतह से कोई २३५ मील ऊंचा है और अपने आप में ओरेगन किनारे का लैंडमार्क है। यहां का किनारा चौडा और रेतीला है और करने के लिये यहाँ बहुत कुछ किया जा सकता है। पर वैसे ओरेगन का यह ३६३ मील लंबा समुद्र किनारा काफी पहाडी और सख्त है। (विडियो 1405-1443)

यहां हमने एक पुराना लाइट हाउस देखा जो अब बंद है। वहां कुछ लोग एक झाडी में किसी जानवर की तस्वीर लेने की कोशिश कर रहे थे। उत्सुकता वश हम भी रुक गये । पता चला कि चिपमंक है । गिलहरी की तरह दिखने वाला यह प्राणी जमीन के अंदर बिल बना कर रहता है।
आगे हम गये एस्टोरिया। यह एक मछुआरों का गांव है और अमेरिका के पश्चिमी तट का सबसे पुराना भी। इसका ऐतिहासिक महत्व इसलिये है कि यह लुइस और क्लार्क जो मिसिसिपि के पश्चिम में जाने वाले सबसे पहले प्रवासी थे  उनका अंतिम पडाव था।
वापसी में हमने माउंट हुड, ओरेगन का सब से ऊँचा शिखर और माउंट बेसिन के दर्शन किये जो एयरपोर्ट जाते हुए भी दिखे। सब समय बर्फ से ढके रहने वाले इन पहाडों में माउंट बेसिन इसके ज्वालामुखीय होने से शिखर पर पतीलेनुमा हो गया है। ये दोनो पोर्टलैन्ड के खास चिन्ह है और पर्यटकों के लिये खास आकर्षण भी। (फोटो Mount Hood) कुसुम ताई के यहां काफी बढिया समय बिता कर हम २ जुलै को चल दिये अपने अगले पडाव पर यानि कि सैन होज़े।

(क्रमशः)

चलते चलो रे 2- रेडवुड फॉरेस्ट

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हमारी उडान दोपहर साढेचार बजे की थी। कुसुमताई और अरुणराव हमें छोडने आये एयरपोर्टा।  उडान लेट हो गई तो हम एक घंटा देरी से पहुंचे सेन फ्रान्सिसको। मकरंद हमे घर लिवा ले गया। अलका (मकरंद की पत्नी) तो भारत से कल आनेवाली थी पर वहिनी आई हुई (भाभी) थीं तो खाना वाना तैयार मिला। दूसरे दिन शाम को अलका भी आ गई बच्चों के साथ। मकरंद के दो बच्चे हैं अंशुल बडा है १५ वर्ष का और अनुभा छोटी है १२ वर्ष की। दोनो अपने ममेरे भाई की जनेऊ में जा कर आये थे तो काफी खुश थे दादी को और बाबा को सब कुछ बताने की बडी जल्दी थी उनको। दो दिन के आराम के बाद हमने रेडवुड फॉरेस्ट देखने की सोची। यह अमेरिका के वेस्ट कोस्ट की खासीयत है और सिर्फ यहीं केलिफोर्निया में पाये जाते हैं। मकरंद के घर में एक नीबू का और एक संतरे का पेड हे उसमें खूब संतरे और नीबू लगे हुए थे। संतरे बडे मीठे थे।
तो पांच जुलै को जल्दी से तैयार हो कर सुबह नौ बजे हम लोग निकले बिग बेसिन रेडवुड फॉरेस्ट के लिये।  हम दोनो मकरंद अर्चना भाभी और अनुभा। सैनहोजे से यह जगह कोई 35 मील दूर है। पहुंचने में करीब सवा घंटा लगा क्यूं कि  आखरी के आठ मील रास्ता चढाई का और घुमावदार है बिलकुल सर्पिल। खूब सारे अंधेमोड भी। दोनों तरफ रेडवुड (SEQUOIA) ऊँचे वृक्ष।  इनकी छाल कटने पर अंदर से लाल दिखाई देती है इसीसे रेडवुड पर समय के साथ कत्थई पड जाती है। हम जब उस जगह पहुँचे तब वहाँ ऑफिस में  टूर के समय के बारे में पता किया। एक टूर 11 बजे शुरु होने वाली थी जो एक खास लूप में घुमाती थी इसमें बहुत पुराने (2000 वर्ष) वृक्ष भी थे। इनको मदर और फादर ऑफ द फॉरेस्ट कहते हैं। वैसे सबसे ज्यादा आयु वाले वृक्ष का रेकॉर्ड 3000 वर्षों का है।
बताइये हमारी  कितनी पीढियां तब तक गुजर गई होंगी। (विडियो ) Clip14444o83Part357to1320

हमारे पास थोडा वक्त था तो हमने वहां के म्यूजियम का एक चक्कर लगाया और वहां के पेडों की पशु पक्षियों की थोडी जानकारी ली।
ग्यारा बजने में पांच मिनिट कम पर हमारी गाइड, इनका नाम था एलिस लू,आ गईं। बहुत ही स्मार्ट और चुस्त दुरुस्त ये गाइड अपने हाव भावों से जंगल का पूरा ब्योरा ऐसे देती जैसे सारी घटनायें उनके सामने घटीं हों। जाते ही उसने पूछा, छोटी पर महत्वपूर्ण पेडों वाली ट्रेल लेनी है या बडी और ट्रेकिंग वाली। (विडियो )
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जाहिर है कि हम लोग जो पहले ही अपनी ट्रेल चुन चुके ते उसके मन मुताबिक ही उत्तर देते, जो दिया। तो चलिये कह कर वह आगे आगे और हम सब उसके पीछे पीछे। चीनी नस्ल के हिसाब से काफी लंबी थी लडकी। उसने बताया कि ये रेडवुड यानि SEQUOIA वृक्ष दुनिया के सबसे ऊँचे वृक्ष हैं और सिर्फ केलिफोर्निया के समुद्र किनारे ही पाये जाते हैं। सबसे ऊँचे वृक्ष का रेकॉर्ड 387.4 फीट का है,  जब कि इनकी सामान्य ऊँचाई 350 से 370 फीट की मानी जाती है। (photo)


(विडियो)
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इन्हें ऊपर तक देखने मे टोपी तो क्या सिर भी गिरने की नौबत आ जाती है, दूखने जो लगता हैं। इन पेडों के तने का घेर  काफी मोटा होता है करीब 25 से 30 फीट (photo)


पर इतने बडे और ऊँचे वृक्ष की जडें जमीन के अंदर केवल पांच या छह फीट ही नीचे तक जाती हैं पर ये जडें आपस में दूसरे पेडों के जडों से गुंथी होती हैं और यही होता है इनके मजबूती से खडे रह पाने का कारण। इन सदा बहार पेडों का आकार क्रिसमस ट्री की तरह ही कोनिकल होता है । इसकी पत्तियां नीचे से चौडी और ऊपर से पतली होती हैं। इतने बडे और ऊंचे वृक्ष के कोन, जिनमें बीज होते हैं, बहुत ही छोटे होते हैं केवल एक डेढ इंच के जिनमें कुल 7-8 बीज होते हैं। बीजों से पेड बनने के मौके केवल 15 प्रतिशत हैं। 

ये अनोखे पेड अपनी जीजीविषा के लिये प्रसिध्द हैं। इन्हें कीडा नही लगता। और आग भी इनका ज्यादा कुछ बिगाड नही पाती। कितने ही पे़ड हमने देखे जो कहीं कहीं से आग से काले तो हो गये थे लेकिन फिर भी ऊपर से हरे भरे और जीवित थे।  बाढ के बाद भी ये अपने को फिर से स्थापित कर लेते हैं। हैं। इन पेडों के तने का घेर  काफी मोटा होता है करीब 25 से 30 फीट पर इतने बडे और ऊँचे वृक्ष की जडें जमीन के अंदर केवल पांच या छह फीट ही नीचे तक जाती हैं पर ये जडें आपस में दूसरे पेडों के जडों से गुंथी होती हैं।

अपनी प्रजाती को बचाने का एक अनोखा तरीका यह कि इन पेडों में बाहर से ट्यूमर की तरह दिखने वाले उभरे हुए गोले से लगे होते हैं ( Lignotuber)। संकट के समय चाहे वह तूफान हो आग हो या बाढ ये ट्यूमर फूट जाते हैं और इनमें से छोटे छोटे पेड (seedlings)  निकल कर दूर तक फैल जाते हैं और वहां नये पेड के रूप में स्थापित हो जाते हैं, इस तर अपनी प्रजाति को सुरक्षित रखते हैंphoto )


कई बार तूफान में पेडों का शीर्ष तना टूट जाता है या वे इको टूटने देते हैं ताकि बाकी पेड बच जाये और फिर से नये पत्ते नई शाखायें उगा लेते हैं। हमारी गाइड ने इसका वर्णन साभिनय कर के बताया। उसने कहा जैसे ही जोर का तूफान आया इस जंगल के मदर यानि अम्मा पेड ने कहा ठीक है ठीक है तूफान, तुम कुछ तो लेकर ही जाओगे, तो मेरा सिर ले जाओ और कैसे वह अपने पैर जमा कर खडी रही और अपने को उखडने से बचाया। यहां पर कहावत उलटनी होगी- कहना होगा कि पैर सलामत तो शाखायें पचास।
एक और खास बात इन पेडों की ये कि ये हमेशा एक गोल आकार में उगते हैं।  ये इसलिये कि जब इनके बीजों वाले ट्यूमर फूटते हैं तो मुख्य वृक्ष के चारों और फैल जाते हैं और वहीं उगते हैं। इस घेरे में करीब 30-35 पेड एक साथ होते हैं। आप जान ही गये होंगे कि इनकी जडें आपस में गुथीं होती हैं । (photo)


(विडियो)
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और एक तरीका अपनी प्रजाति को बचाने का ये कि यह कहीं से भी उगना शुरु हो जाते हैं । कटे तने से, गिरे हुए पेड के तने से नई पत्तियाँ फूट कर नया पेड चालू हो जाता है। ऐसे ही नही मिलती हजारों वर्षों की जिंदगी।

एक दो विशेष पेड हमारी लू मैडम ने दिखाये जिनमें एक में तो तने के दोनो तरफ सीधी लाइन मे छेद थे तो आर पार देखा जै सकता था। (photo)



और एक पूरा का पूरा पेड खोखला और ऊपर से कटा ।  नीचे से एक दरवाजेनुमा जगह भी थी  जिसमें से ऊपर देखो तो आसमान नज़र आता था।
इस पार्क में कोई 130 कि.मी. की ट्रेल्स हैं। बहुत से जल प्रपात भी हैं पर हमारी ट्रेल छोटी थी। इस जंगल में हिरण, रेकून, जंगली बिल्ली, आदि प्राणी तथा ब्लू जे का चचेरा भाई स्टेलर जे, एकॉर्न वु़डपेकर इग्रेटस् तथा मार्बल मरलेट्स नामक दुर्लभ और एनडेंजर्ड पक्षी भी पाये जाते हैं।
मारबल्ड मरलेटस ये छोटे आकृति के समुद्री पक्षी होते हैं जो  उत्तरी प्रशांत महासागर में पाये जाते हैं और ये कैलिफोरनिया के किनारे के पुराने जंगलों में खास तौर पर रेडवुड के जंगलो में प्रजनन के लिये आते हैं। अपना घरौंदा बनाने के बजाय ये समुद्रीपक्षी करीब 50 मील अंदर जमीन पर आकर  अपना इकलौता  अंडा जंगल के छतरी नुमा पुराने हिस्से में देते हैं। पर अब जंगल कटाई के कारण पुराने हिस्से कम होते जा रहे हैं और ये पक्षी भी। मौसम का बदलाव और खनिज तेल का समुद्र में गिरना भी इनकी संख्या में कमी आने का एक कारण है तथा मछुआरों की बढते कार्य कलाप भी। जैसे ही अंडे से बच्चा बाहर निकलता है माता या पिता समंदर से करीब 30 मील सफर कर के उनके लिये मछली लाते हैं। हमें हमारे गाइड ने इस पक्षी का एक चित्र भी दिया (फोटो)। 



इस रेडवुड के जंगल में रेड वुड तो बहुतायात में हैं ही पर इसके अलावा कोस्टल डगलास फिर जो कि रेडवुड की तरह ही पर थोडे कम ऊंचे वृक्ष होते हैं करीब 300 फीट, टनओक  बिग लीफ मेपल भी यहां पाये जाते हैं । ये तो हुई ऊँचे वृक्षों की बात पर हकल बेरी ,ब्लेक बेरी ,सामन बेरी आदी झाडियां भी खूब होती हैं। रोडोडेन्ड्रॉऔर अझेलिया जैसे फूलों की झाडियां भी। हमारे इस सफर में हमारे गाइड ने हमें बहुत से पुराने वृक्ष तथा नीचे  गिरे हुए तने भी दिखाये।  रेडवुड की लकडी मारती लकडी कहलाती है तथा सका फर्नीचर भी बहुत अच्छा माना जाता है ।
हमारी गाइड ने फिरवापिस उसी ट्रेल से लाकर हमें हमारे शुरुआती स्थान पर पहुंचा दिया। इस टूर से बहुत सी जानकारी तो मिली ही पर एक और फायदा तो ये हुआ किइन पेडों से जान-पहचान अच्छे से हो गई।अर्चना भाभी और मै कैलिफोर्निया में जहां भी घूमने जाते जाते रेडवुड के पेड तुरंत पहचान लेते।सात तारीख को हमें जाना था हमारे योसोमिटी, लास-वेगास तथा ग्रेंड केनियन टूर पर । तो दो दिन बीच में थे तो हम सैन होजे के मंदिर घूम आये,  सांई मंदिर, जैन मंदिर, स्वामी नारायण मंदिर और शिव मंदिर।


(क्रमशः)

चलते चलो रे-3 योसेमिटी नेशनल पार्क

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आज जुलै की सात तारीख, आज हमें निकलना था अपने टूर पर। इस टूर पर हम दोनो ही जा रहे थे क्यूं कि अर्चना वहिनी और मकरंद वगैरह पहले ही देख चुके थे ये सब। हमारी टूर एक चीनी कंपनी के द्वारा संचालित थी।
केलिफोर्निया में चीनी लोग बहुत हैं और भारतीय भी पर चीनी ज्यादा हैं क्यूं कि ये लोग 1930 के दशक से आने शुरु हो गये थे, रेल रोड के मजदूरों के रूप में, पर अब ये सारे काफी पढे लिखे और पैसे वाले लोग हैं। तो हमें सात तारीख को सुबह पौने नौ बजे मरीना सुपर मार्केट क्यूपरटिनो पहुंचना था जहां से हमारी बस हमें ले कर वाया सैन फ्रान्सिस्को सब टुरिस्टों को इकठ्ठा करते हुए योसेमिटी जाने वाली थी। हम थोडे जल्दी ही पहुंच गये ताकि मिस ना हो। कोई पद्रह मिनिट इंतजार करने के बाद हमें एक छोटी वैन आती दिखी. मकरंद हमें छोडने आया था उसी ने पता किया कि यही वैन हमें और चार और लोगों को ले कर आगे सैन फ्रान्सिस्को जायेगी और वहां से हमें बडी बस मिलेगी। मकरंद को चूंकि ऑफिस जाना था हमने उससे विदा ली। हमारे चार साथी यानि दो बच्चे और दो महिलायें आ गईं । ये दोनो मां बेटी थीं और बच्चे बेटी के थे। फिर हम चल पडे सैन फ्रान्सिस्को की ओर। रास्ते में खाफी लोग आते गये और बस पूरी भर गई। हमारे साथ 4-5 हिंदुस्तानी जोडे भी थे तो सही रहा, वरना ज्यादा तर तो चीनी ही थे। हमारे साथ वाले सीट पर एक नया जोडा बैठता था। ये दोनों थे तो मुंबई से पर गोआनीज ते। नय़ी नयी शादी होने के बावजूद भी बहुत मिलन सार और मदद करने वाले।

सारे लोगों के आते ही हमारी गाइड ने अपना परिचय दिया और हमारे सामान्य ज्ञान की परीक्षा लेनी शुरु कर दी।
केलिफोर्निया का दूसरा नाम क्या है, नेवाडा को और क्या कहते हैं, गोल्डरश का नाम सुना है क्या, योसेमिटी क्या है, वगैरा वगैरा।
परीक्षा में तो बहुत कम लोग सफल रहे  पर अंततः हमारे सामान्य ज्ञान में वृध्दी ही हुई। गाइड का नाम था सूझन। 



कैलिफोर्निया को गोल्डन स्टेट के नाम से जाना जाता है। क्यूं कि सोना यहीं पाया गया और कैलिफोर्निया गोल्ड रश .तो प्रसिध्द ही है।  केलिफोर्निया में सोना पाने का समय है 1848-1855, जब पहली बार सोना जेम्स मार्शल के स्टटर मिल (कोलामा) में पाया गया। इसके बाद तो यहां लोगों का तांता लग गया ये लोग मध्य अमेरिका, पूर्वी तट तथा मैक्सिको एशिया और लेटिन अमेरिकी देशों से भी आये। 

इसके बाद तो सैन फ्रंन्सिस्को जो 200 लोगों की छोटी सी बस्ती थी एकदम से 5-7 सालों में 25000 लोगों वाले एक शहर में बदल गया। केलिफोरनिया उत्तरी अमेरिका का हिस्सा बन गया (इससे पहले य मैक्सिको का हिस्सा होता था) और उसको प्रांत (स्टेट) का दर्जा भी हासिल हुआ। अनाज और फलों का उत्पादन जोरों से शुरु हुआ। अमेरिका का दो तिहाई अनाज यहीं पर होता हे। और सूखा मेवा जैसे बादाम, अंजीर और किशमिश भी। बिजली उत्पादन के लिये विंड मिल्स का भी यहां खूब प्रयोग होता है (विडियो) । 

सेंट्रल वैली यहां की ग्रेनरी कहलाती है यह ग्लेशियर के कारण बनी है।
यहां पैसिफिक पर्वत श्रृंखला तटीय है तथा सियेरा नेवाडा पूर्वी पर्वत श्रृंखला है, विटनी पर्वत यहां का सबसे ऊंचा शिखर है। ये तो हुई पूरे केलिफोर्निया स्टेट की बात।फोटो picture/centralvalbing)



हम जा रहे थे योसेमिटी वैली जो कि सेंट्रल सियेरा पहाडों का हिस्सा है और ग्लेशियर के कारण बनी है। यह 8 मील लंबी तथा एक मील गहरी है चारों तरफ से ग्रेनाइट के पहाडों से घिरी है। हाफ डोम या अर्ध-गुंबद यहां का प्रसिध्द लैन्डमार्क है। (photo 0308)



 यहां लोग ट्रेकिंग करते हैं।हम 13-14 साल पहले यहां आये थे तो ये अर्धगुंबद देखा था।ये वैली (घाटी) प्रसिध्द है सेक्वाया (रेडवुड) जायंट सेक्वायाऔरडगलस फर के जंगलों के लिये (img 0321)



औरसुंदर प्रपात, और ग्रेनाइट के अद्भुत पहाडों के लिये (Photo img 0320)





गोल्ड रश के दौरान बहुत से योरोपीय और पूर्वी तट के अमेरिकी यहां के संसाधनों में अपना हिस्सा बांटने के लिये तथा कब्जा करने के लिये आये तो यहां के मूल निवासियों के साथ उनकी लडाइयाँ हुईं। जब ये मूल निवासी इन गोरे लोगों को देखते तो अपने लोगों को योसेमिटीSयोसेमिटीSकह कर चेतावनी देते योसेमिटी माने खतरा। तो गलती से लोगों ने इस जगह का नाम ही योसेमिटी ऱख दिया। जॉन मिलर नामक व्यक्ति ने योसेमिटी नेशनल पार्क बना कर इस सुंदर जगह को सुरक्षित किया।आक्रामकों ने सोने के लिये तथा अन्य खनिजों और जमीनों पर कब्जा जमाने के लिये यहां के मूल निवासियों को लगभग खत्म ही कर दिया गया।

हमारी बस योसेमिटी पार्क पहुंची कोई दो बजे हमें योसेमिटी फॉल्स देख कर आने के लिये पंद्रह मिनिट दिये गये। हमें फिकर थी कि हम देख कर समय से लौट पायेंगे या नही पर हो गया प्रपात में बहुत पानी नही था और दूर से ही देख पाये फोटो नही खींच सकें शायद विडियो में हो। एक और प्रपात है ब्राइटल फॉल्स इसके के बारे में कहते हैं कि यहां की बौछार यदि आप पर गिरे तो जल्दी ही आपकी शादी हो जाती है।वहां से फिर हम थोडऊपर गये और देखे सांस रुक जायें ऐसे दृष्य।  ज्यादातर पर्यटक  जो इस नेशनल पार्क में आते हैं इसी स्थान पर पहुंचते हैं। टनेल व्यू कहते हैं इस जगह से दिखने वाली घाटी के दृष्य को। यहां से एल केपिटन, सेन्टिनेल डोम और हाफ डोम यानि अर्द गुम्बद देखे जा सकते हैं जो घाटी के तले से 3000 से 5000 फीट ऊंचे हैं। खूब चित्र खींचे। आप भी देखें।









और देखें विडियो। 

विभिन्न आकारों और नामों वाले ग्रेनाइट के पहाड, इसका एक नक्षा भी है और मॉडल भी उनके भी चित्र हैं। हो सकता है इन पहाडों को आप नाम से पहचान लें। काफी समय यहां बिताया फोटो और विडियो लिये। पहले जब हम यहाँ आये थे तो मेरी एक भतीजी को मैने कहा था ये कैसा नाम है योसेमिटी तो वो हंस कर बोली काकू, आप तो यशोमती मैया को याद रखिये योसेमिटी अपने आप याद रहेगा।



शाम हो चली थी और हमें आगे जा कर रुकना था, ताकि हम लास-वेगास के थोडे और पास पहुंच जायें।

(क्रमशः)

चलते चलो रे ४ -लासवेगास-

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शाम हो चली ती और हमें आगे जा कर रुकना था, ताकि हम लासवेगास के थोडे और पास पहुंच जायें।


यहां नेवाडा और कैलिफोर्निया के सीमा पर बहुत से सोलर प्लांट लगाये गये हैं जहां सूर्य की किरणों को संवर्तित कर के ताप उत्पन्न किया जाता है और इससे बडे बडे बॉयलरों में गर्म हुए पानी से बिजली का उत्पादन होता है। इस परियोजना का उद्घाटन हाल ही में (मार्च) हुआ है, ओबामा जी के वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन कार्यक्रम के अंतर्गत। इससे इस मरुथल में एक बडा सा सरोवर बन गया है।

तो महावी मरुथल  के इस प्रवास में हमने कोई ३५० मील का अंतर तय किया। यह मरुथल मूलतः पर्वत श्रेणियों का बना है इसीसे इसमें ३ से ४  लेवल नजर आते हैं। शाम होते होते हम पहुंचे लासवेगास। जब वेलकम टु लासवेगास का बोर्ड देखा तो बहुत अच्छा लगा। हम रुके  होटेल एक्स केलिबर में। ये भी बहुत सुंदर होचल है। इसका बाहरी आकार प्रकार डिसनी लैंड की तरह का बनाया है। बहुत बडा कसीनो भी है यहां।
हमें बताया गया कि जल्दी जल्दी तैयार हो जाओ नाइट टूर के लिये इसका अलग से टिकिट था २५ डॉलर का पर देखना तो था ही। सब से पहले हम गये होटल सीझर्स पैलेस । वहां एक ५-७ मिनिट का शो देखा सैमसन एन्ड डिलाइला। आप में से बहुतों को पता ही होगा कि डिलाइला को सैमसन बहुत प्यार करता था पर उसने इसके साथ पैसे के लिये विश्वास घात किया और सैमसन को जेल जाना पडा। पर शो जो केवल दस दस मिनिट का था सिर्फ सैमसन को आग में जलता हुआ दिखाया था। (विडियो)
फिर हम गये होटल बेलाजियो जहां पर फव्वारों का सुंदर नृत्य देखा। यहां सुंदर संगीत पर पानी को भिन्न भिन्न आकारों में नाचते देख मन प्रसन्न हो गया आप भी देखिये और लीजीये आनंद। वहां फिर  देखा एक खूबसूरत कांच का सीलिंग जिसमें बहुत से सुंदर सुंदर फूल पत्ते बने हुए थे। यह कोई २००० कांच के फूलों से बना है जो गर्म कांच को ब्लो कर के बनाये गये हैं इनका कलाकार  वॉशिंगटन स्टेट से था। वहीं हमने एक नकली बागीचा और उसमें नकली जानवर देखे।  अपने आकार प्रकार से बडे फूल पत्ते और घोंगे भी। ( वि़डियो) इस ट्रिप में हमारे साथ हिन्दुस्तानी कपल्स तो थे ही पर एक अकेली जर्मन महिला थी। उससे थोडी सी दोस्ती हो गई थी । उसका मत था कि यह सब बहुत ही नकली और भौंडा लगता है। 
फिर हमने रास्ते में एक ज्वालामुखी का प्रदर्शन देखा। बहुत से लोगों नें डान्स का शो देखा इसका नाम था जुबिली। कुछ लोगों नें कुंग फू पान्डा का लाइव शो देखा । कुंग-फू पांडा मूवी तो मैने अपने पोती के साथ ३-४ बार देखी हुई थी, और जुबिली शो के टिकिट थे ७५ डॉलर प्रति व्यक्ति तो सोचा छोडो। फिर बस ने हमें घुमा कर भिन्न भिन्न होटल बाहर से दिखाये। जिसमें न्यूयॉर्क न्यूयॉर्क, होटेल लक्जर, एम जी एम ग्रेंड होटेल, होटेल रिनेसां, बेलेसिया, हॉलीवुड और  फ्लेमिंगो जिसे उसके मालिक ने अपनी प्रेमिका के नाम से बनाय उसका असली नाम तो वर्जीनिया था पर फ्लेमिंगो उसका स्टेज का नाम था। (विडियो)। ये शोज वेनेशिया होटल में थे। यहीं पर हमने देखा कृत्रिम आसमान। एक नहर में बहुत सुंदर सुंदर नौकाएं तैर रही थीं और कुछ लोग बोटिंग कर रहे थे। हम बडी देर तक वहां खडे रहे फिर एक जगह गाने का कार्यक्रम चल रहा ता एक लडकी फ्लूटनुमा वाद्य बजा रही थी, कुछ लोग नाच रहे थे थोडी देर बैंठ कर हमने भी मज़ा लिया। फिर थोडा घूम कर दूकानें देखीं जो अपने आप में देखने वाली चीज थीं। 
हर होटल का महत्वपूर्ण भाग है यहां पर कसीनो। इन होटलों में रहने खाने के दाम इतने ज्यादा नही होते पर एक बार जुए में फंस गये तो पैसे खो कर ही बाहर आते हैं।


शो देखने वालों का शो खत्म हुआ और हम अपने होटल वापिस आये।खाना खाया और सो गये। कल हमें जाना था ग्रेंड केनियन्स। हमेशा की तरह सूझन का आदेश था कि हमें साडे छै बजे चल देना है तो सब लोग ठीक समय से आ जायें । हमारा सफर छै घंटे जाना और छै घंटे आना होगा और २ से तीन घंटे हम वहां बितायेंगे, देर शाम
वापिस हम इसी होटल आयेंगे और परसों सुबह हमारी वापसी का सफर शुरु होगा।

(क्रमशः)

....चलते चलो रे - ५ - ग्रेंड केनियन्स...

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हम ने अपने होटल वापिस आ कर खाना खाया और सो गये क्यूं कि ६ बजे निकलने के लिये साढे चार बजे तो उठना ही होगा । दिन भर का सफर था तो नहाना तो जरूरी ही था दोनों को । हम सोये तो पर यका यका एक तीखे अलार्म की आवाज़ ने हमें जगा दिया। घडी देखी तो दो बजे थे। अब यह क्या हुआ, लग तो रहा था कि फायर अलार्म है। अलार्म बजता ही रहा कोई  २५ मिनिट तक, हम लॉबी में जा कर देख भी आये सभी लोग टहल रहे थे पर थोडी देर बाद की अनाउन्समेन्ट से पता चला कि किसी फॉल्ट की वजह से अलार्म ट्रिगर हो गया है और वे उसे सही करने की कोशिश कर रहे हैं कोई आग वाग नही लगी है पर नींद तो उडा ही दी थी। सुबह तो उसी समय निकलन था क्यूंकि जाने के लिये ६ घंटे और आने के लिये ६ घंटे लगने वाले थे । हम जा रहे थे दक्षिणी केनियन्स देखने। मकरंद ने बताया था कि वहीं जाना क्यूं कि वहां I-Max  पर एक मूवी दिखाई जाती है जिसमें ग्रेंड-केनियन्स के बारे में उनका पूरा इतिहास भूगोल सब बताया जाता है।  
 तो उठे साढेचार बजे और नहा धो कर तैयार हो कर पांच मिनिट पहले ही नीचे पहुंच गये। चूंकि इतने जल्दी सफर शुरु हुआ था तो हम दो घंटे  के सफर के बाद रुके, बेस्टो में, और कॉफी और नाश्ता किया।  हम अब एरिझोना में सफर कर रहे थे। यहीं कोलारेडो नदी पर जग प्रसिध्द हूवर बांध बना है। जाते हुए तो हम सिर्फ इसका बडा सा रिझरवॉयर ही देख पाये पर हमारे गाइड ने आश्वस्त किया कि वापसी पर हम जरूर हूवर बांध के दर्शन कर पायेंगे। हमारा सफर लंबा था पर हमारे ड्राइवर और गाइड ने बिलकुल बोरियत नही महसूस होने दी। उसने बीच बीच में हिंदी गाने भी चलाये जिनका स्टॉक उसके पास सीमित ही था। यहां हमने फिर से वे जोशुआ नामके पेड देखे जो कि हाथ उठा कर अभिवादन करते से प्रतीत होते हैं।
ग्रेन्ड केनियन्स अपने विराट आकार और अनोखे अदभुत रंगों के कारणजो दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक  माना जाता है, एरिझोना राज्य में स्थित है । यह कोई १८ मील चौडी और २७७ मील लंबी और एक मील गहरी हैं।  यह  उत्तरी और दक्षिणी दो भागों में बंटी हुई है।  उत्तरी भाग में स्काय वॉक की सुविधा भी है और दक्षिणी केनियन्स में  आयमेक्स मूवी की। वैसे तो हम केनियन्स पहले भी देख चुके थे हवाइ में पर इनकी बात ही कुछ और है और ये अपने नाम की तरह ही ग्रेंड हैं। एकदम भव्य दिव्य। ये केनियन्स कोलारेडो नदी के कारण बनी हैं। कई वर्षों तक (करीब 170 लाख) पानी इन पहाडों पर से  वेग से गुजरने के  कारण बनी हैं। हूवर बांध के कारण यह नदी केनियन्स के इलाके में एकदम पतली हो गई है।
कोई साढे बारह बजे हम पहुंचे ग्रेन्ड केनियन्स के विजिटर सेन्टर में वहां पहले लाइन में लग कर जल्दी जल्दी खाना खाया और फिर देखी वह मूवी जो नेशनल जिओग्राफिक की बनाई हुई है। बहुत ही कमाल की मूवी है जो कि प्रागैतिहासिक काल से शुरु होती है जब यहां के मूल निवासी प्यूब्लो जाति के लोग यहाँ स्वच्छन्दता से विचरते थे और यहां के प्राणियों के साथ ताल मेल बिठाये हुए थे । हालांकि शिकार ही उनका भोजन जुटाने का मुख्य जरिया था। इन लोगों की भाषा में केनियन्स का नाम था ऑन्गटुपका । ये लोग यहीं गुफाओं में रहते थे। उसके बाद का वृतांत बताता है कि कैसे फिर और प्रवासी यहां आये और किन किन कठिनाइयों का सामना उन्हे करना पडा । इस  मूवी को देख कर पैसा वसूल हो गया। इसकी झलक आपको यू ट्यूब पर मिल जायेगी। ( विडियो)
वहां से निकल कर हमने सेंटर में बने हुए नक्शे को देखा जिनमें इन केनियन्स के विभिन्न आकारों के कारण उन्हें दिये गये अलग अलग नामों की जानकारी थी। इनमें से एक विष्णु टेम्पल नामका भी था । फिर हम गये केनियन्स देखने।सेंटर से हम पैदल ही चल कर गये क्यूं कि केनियन्स पार्क कोई पांच मिनिट के चलने पर ही आ गया। हम थोडा चल कर गये और देखा एक विराट, भव्य, दिव्य प्राकृतिक अजूबा। ये रंगीन पहाडियाँ (पहाड कहना ही उचित होगा) और ये घाटी जो उतनी ही ऊबड खाबड और पथरीली और बीच में पतली सी धारा कोलेराडो नदी की जो कहीं कहीं से ही नजर आती क्यूं कि सब दूर से तले तक नजर पहुंचती ही नही थी। यह नदी पतली हूवर बांध की वजह से है। वरना जो मूवी हमने देखी उसमें जो कोलारेडो नदी है कितनी तूफानी और प्रचुर पानी वाली। अबी भी कहीं कहीं पानी तो है ही क्यूं कि रिवर वॉटर रेफ्टिंग    और बोटिंग के इश्तेहार तो होते ही हैं। इन पहाडियों के कितने रंग लाल, नारंगी, हरे (पेडों की वजह से), भूरे मटमैले और सफेद झक। केनियन्स देखने के लिये एक गैलरी-नुमा चलने का रास्ता बना हुआ है जहां से बीच बीच में सीढियां हैं जिनसे नीचे की ओर जाकर और तले तक देख सकते हैं और फोटो विडियो ले सकते हैं। (विडियो)

चारों तरफ बनी ये केनियन्स देखीं जो पानी से कटने के कारण बनी हैं। हमने कोई डेढ घंटा ही इन केनियन्स को देखने में गुजारा । विभिन्न रंगों, आकार प्रकार की यह कटी पहाडियां और घाटी लोगों की नजरों में अलग चित्रों के सृजन करती हैं इसी से इनके विभिन्न नाम है। हमने सफेद पहाडियों में एक पहाडी देखी जो भुवनेश्वर के बिंदुसागर मंदिर की तरह दिखती है। (विडियो केनियन्स)
 हमें कोई डेढ घंटे बाद वापिस जाना था। तो अनिच्छा से ही हम वापिस चल पडे। हम दोनो ही रह गये थे हमारे ग्रूप से तो और कोई हमारे साथ नही था आते हुए रास्ता जितना सरल लगा था वापसी मे वही हमें बस तक नही पहुंचा सका या हम नही पहुंच पाये इधर बस छूटने का समय हो रहा था। यह तो अच्छा हुआ कि हमारी गाइड सूझन का फोन नंबर हमने ले रखा था। फिर हम घूम घाम कर वापिस विजिटर सेंटर पहुंचे और उसको वहां से पोन किया कि हमें बस नही मिली तो हमें सेंटर से  ले लो।  सूझन नें कहा वहीं रुको मै आती हूँ। और इस तरह हम उसके  साथ बस तक पहुंचे। वहां जाने पर पता चला कि हमारे तरह काफी लोग रास्ता भटक गये थे और बस हमारी  आधे घंटे देर से ही चल पाई। वापसी पर हमने हूवर डैम का विडियो किया। एक जगह पहाडी पर एक बिल्ली जैसी आकृति बनी हुई थी। फिर हम रुके रूट 66 पर जो अमरीका कि पहली नेशनल हायवे है।  इसको विल रॉजर्स हाइ-वे या मदर रोड भी कहते हैं। यह शिकागो, इलिऩॉय से सान्ता मॉनिका केलिफोरनिया तक जाती है और बीच में मिसूरी, कन्सास, ओक्लाहोमा, टेक्सास, न्यू मेक्सिको और एरिझोना से गुजरती है। हमने इसका एरिझोना वाला छोटा सा हिस्सा देखा और वहां एक जगह एक दुकान में रुके जो इसके शुरुआत से है।  इसकी पूरी कहानी पर हमने बस में एक फिल्म भी देखी। उस दूकान में जब लोग खरीदारी कर रहे थे तो काफी समय गुजारा और एक मुंबई के पंजाबी कपल ओर उत्तर हि्दुस्तान के मराठी कपल से मिले जब कि हम सारा वक्त उलटा ही सोच रहे थे। बडा मज़ा आया। हमनेे आर्थ्राइटिस के बारे में एक दूसरे के अनुभव भी बांटें (विडियो रूट 66)। 
 शाम को करीब सात बजे हम वापिस लास वेगास पहुंचे और जल्दी से खा पी कर रात को फिऱ आस पास के होटल की रोशनाई देखने घूमे। इस बार हमारे अपने होटल का भी विडियो किया।
कलस सुबह हमारी वापसी थी।  
सुबह जल्दी उठना था । क्यूं कि लंबा रास्ता तय करना था। सब को वापिस अपने अपने गंतव्य पर जाना था कुछ लोग जो भारत से सीधे आये थे उनको आगे भी घूमना था न्यूयॉर्क बोस्टन वगैरा। बहुत से लोगों को लॉस एन्जिलिस जाना था। बचे हुए लोगों मे से अधिक तर सैन फ्रान्सिस्को के थे और हमें जाना था कूपरटिनो।

(क्रमशः)

मन गई दिवाली

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गम की अमावस में न डाल हथियार तू
एक दीप तो हौले से जरा उजियार तू।

रोशनी की हर किरण चीरती है अंधेरा
देख रख हौसला, न मान हार तू।

मन में अगर हो आस तो पूरी करेंगे हम
यह ठान के ह्रदय में, बढ आगे यार तू।

जितनी है सोच काली उसे मांज के हटा
फिर देख अपने मन को यूँ चमकदार तू।

अपनी खुशी के फूल चमन में बिखेर दे
तो बहेगी खुशबू वाली, लेना बयार तू।

तेरे मन की रोशनी से हो उजास आस पास
तब मन गई दिवाली यही जान यार तू।






....चलते चलो रे 6- वापसी और सैन-फ्रांसिस्को की सैर-....

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हमारी बस सुबह साडे छै बजे चल दी। जाते हुए सब वे ही पडाव थे जो आते हुए लगे थे। हमें अर्चना भाभी ने बताया था कि वापसी पर लंच के लिये जहां बस रुकेगी वहां से थोडी ही दूर एक इन्डियन रेस्तरां है। अगर 2-3 लोग जायें तो रास्ता ढूंढने की मुश्किल नही होगी और वहां खाना थोडा अपना जायके का मिलेगा। तो वाकई हमने देखा कि सारे अपने भाई बहन वहीं जा रहे थे तो हम भी साथ हो लिये और वाकई इतने (?)दिनों बाद अपना खाना पा कर और खा कर चैन आ गया।
सैन फ्रांन्सिस्को के पास एक जगह गिलरॉय में बस रुकी वहां लहसन की खेती होती है। वहां एक गार्लिक उत्सव आयोजित किया जाता है जहां लहसन के विभिन्न पदार्थ गारलिक ब्रेड से लेकर गार्लिक पुडिंग और आइसक्रीम तक बनाये जाते हैं। मुझे तो गार्लिक आइस क्रीम सुनते ही अजीब लगा, खाने की तो छोडो। करीब तीन बजे बस सेन फ्रांन्सिस्को पहुंची वहीं से एल ए को जाने वाले लोग अलग बस में चढे  जाने से पहले एक दूसरे से गले मिलना हुआ । सैनफ्रांसिस्को के अलग अलग इलाके में जाने वाले लोग हमारे साथ ही रहे। जब सारे लोग उतर गये तो बस हम छह लोग जिन्हे कूपरटिनो जाना था रह गये वही मां बेटी और बेटी के दो बच्चे। बस ने हमें मरीना सूपर स्टोर के पास उतारा। मकरंद भी पांच मिनिट में आ गया और हम अगले पंद्रह मिनिट में उसके घर।  घर आ कर उत्साह से सब को सारा वृतांत सुनाया। दो दिन और मकरंद के पास रह कर हमें हमारी भतीजी शाश्वती के पास जाना था।
 दो दिन बाद हम गये शाश्वती के घर लोस-अल्टोस (कूपरटिनो) मे गये। यहां से स्टेनफर्ड युनिवर्सिटी काफी पास है और गूगल और एपल कम्पनी के ऑफिसेज भी। उसकी बडी बेटी अमृता माउन्टेन व्यू  हायस्कूल में पढती है जहां बिल गेटस् ने भी पढाई की थी या छोड दी थी। शाश्वती मेरे बडे भाई साहब की बेटी है। भाभी भी वहीं आई हुईं थीं तो हमें थोडा और अच्छा लगा। शाश्वती अपने बेटियों के साथ रोज शाम को दुर्गा आरती करती है तथा  ग्यारा मनाचे श्लोक भी सब मिल कर बोलते हैं। उसकी बेटियाँ हिंदुस्तानी क्लासिकल संगीत भी सीखती है। एक दिन शाम को आरती के बाद उन्होने हमें गाने की एक झलक दिखाई आप भी सुनें। (घर विडियो फोटो)

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शाश्वती हमें दूसरे दिन ले गई एक आर्ट शो में वहां सब चीजों की कीमते तो काफी ज्यादा थीं पर शो में मजा आया और खाना पीना तो हर जगह होता ही है विडियो)।

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 शाश्वती गायनेकॉलॉजिस्ट है पर उसने हमार लिये दो दिन छुट्टी ले ली थी फिर वह हमें शाम को सैन होजे की पब्लिक लायब्रेरी ले गई वहां हिंदी और मराठी की किताबें भी थीं, बहुत ही अच्छा लगा। हमने पांच पांच किताबें चुनी और उसने वे इशू करा लीं। (विडियो art show)
अगले वीक एन्ड शाश्वती और नितिन हमें सैन-फ्रान्सिस्को ले गये हम गये सैन-फ्रान्सिस्को को बर्ड आय व्यू से देखने । वहां बहुत मजा आया। फिर गये गोल्डन गेट ब्रिज देखने। इसके लिये हमने एक क्रूज ले ली थी। उससे बोटिंग भी हो गई और गोल्डन गेट को भी अच्छे से देख लिया (विडियो)। बोट के ऊपर के डेक पर तो बहुत हवा थी  इसलिये हम बैठे तो अंदर पर जब ब्रिज पास आया तो नीचे के डेक पर चले गये और विडियो किया। यह एक सस्पेंशन ब्रिज है जो एक मील चौडी और तीन मील लंबी गोल्डन गेट स्टैट पर बना हुआ है। सैन फ्रान्सिस्को का लैन्ड मार्क है।  यह पुल सैन फ्रांसिस्को शहर को मरीन काउंटी से जोडता है। यह 1937 में बन कर पूरा हुआ और तब कंस्ट्रक्शन इंजिनियरिंग का एक अजूबा था।( video Sanfransisco Golden gate   cruise)
 यहीं से हमने अलकत्रास आयलैंड भी देखा, जहां एक लाइट हाउस और मिलिटरी जेल 1926 में बनाई गई।  भयंकर कैदियों को यहां रखा जाता था। पर अब तो इसका बस ऐतिहासिक महत्व रह गया है। यह जगह इतनी ठंडी और भयंकर थी कि सरकारी महकमा भी इसे अपने किसी काम के लिये लेना नही चाहता था। 1986 से इसे एक पर्यटन आकर्षण के तौर पर विकसित किया गया।  (Alcatras Video)
 मंगलवार  और बुधवार को शाश्वती ने हमारे लिये छुट्टी ली थी तो वह हमें मॉन्ट्रे बे ले गई। यह सैन होजे के दक्षिण में स्थित है। यहीं पर कैनरी रो के समुद्र तट पर फिशरमेन्स वार्फ औऱ बे एक्वेरियम भी हैं।  किसी समय यह मॉन्ट्रे पहले मेक्सिकन केलिफोर्निया की राजधाऩी हुआ करती थी। तब मेक्सिको भी स्पेन का उपनिवेश था। यह जगह भी उन्होनें ही सबसे पहले खोजी थी। वहां हमने बे पार्क की सैर की और एक ऐतिहासिक म्यूजियम देखने गये पर  वह बंद था। ( Montrey bayविडियो)।

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फिर हम गये सतरा मील लंबी सुंदर ड्राइव पर (17 miles Scenic drive) । हम जब पहले यहां आये थे तब भी  यहां कार से घूमे थे। तब नापा वैली और लेक टाहो भी गये थे। पर इस समंदर के किनारे किनारे चलने वाली सडक पर सुंदर सुंदर पॉइन्टस बहुत अच्छे लगते हैं। हमने शुरु किया पैसिफिक ग्रोव से। हकलबेरी हिल, पेस्काडेरा पॉइन्ट, स्पेनिश बे, सनसेट पॉइन्ट के अलावा लोन साइप्रस, घोस्ट ट्री, पेबल बीच, सील रॉक और बर्ड रॉक भी हैं। (विडियो)

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 लोन साइप्रस एक अकेला पेड है जो समंदर के अंदर तक गये एक टीले पर खडा है। 
घोस्ट ट्री एक सूखा सा साइप्रस का पेड है जो प्रकृती की मार झेलता हुआ एकदम सफेद हो गया है। शायद शाम के धुंधलके में भूत की तरह लगता हो।
बर्डरॉक नामक टीले पर कोरमोरान्ट और पेलिकन पक्षी आराम पर्माते देके जा सकते हैं। ये पक्षी हमने भरतपुर के पक्षी अभयारण्य में भी देखे थे।
सील रॉक पर खूब सारी सील्स आराम फर्माते हुए धूप सेंक रही थीं।
पेबल बीच पर ही है पेबल बीच लॉज जहां गोल्फ के रसिक लोग रुकते हैं और वे भी जो घूमने फिरने में आराम गाह की चाह रखते हैं। यहीं है जगद्विख्यात गोल्फ कोर्स । (विडियो)
स्पेनिश बे एक सुंदर समुद्रतट है। हकलबेरी हिल् पर शायद हकलबेरी की झाडियां होंगी । (फोटो)
ऐसे चलते चलते फिर हम पेबल बीच पर रुके और वह सुंदरसा लॉज देखा बाहर से ही। फिर चले और केलिफोर्निया राउट 101 पर निकल आये।
एक दिन हमने मराठी सिनेमा भी देखा बडी अलग सी कहानी थी थोडी मनोविज्ञान की झलक लिये हुए। बाज़ार जाना तो आते जाते हो ही जाता था। ऐसा लगा मानो हिंदुस्तान पहुंच गये हों।
एक और दिन शाश्वती हमें ले गई साइन्स म्यूजियम दिखाने । वहां काफी रोचक जानकारी मिली। वहां काफी मजेदार चीजें देखने को मिली  आप भी आनंद लें।( Science Museum)विडियो)
इस पूरे सफर में हमने महीना लगाया क्यूं कि अपनों के यहां रुकने की व्यवस्था थी नही तो शायद 8-10 दिन में ही सब निबटाना होता। इस तरह पहले कुसुम ताई के यहां और फिर मकरंद और शाश्वती के यहां मजे किये और फिर 23 तारीख को सुबह सुबह की (6 बजे) उडान से अपने घर वापिस।

(समाप्त)

सब के लिये यही मनाते हैं।

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मन के सूने कोने भी जगमगाते हैं
अंधेरे में कई दीप झिलमिलाते हैं।

देख कर बाहर की रोशन दुनिया
दुखियारे दिल भी बहल जाते हैं।

ये दिवाली, ये मिठाई, और फुलझडियाँ
कितने रंगीं सुंदर समय को लाते हैं।

मिटा के सभी मनमुटाव के जाले
मन को निर्मल आनंदमय बनाते हैं।

ये रोशनी सदा बसी रहे मन में
हम तो सब के लिये यही मनाते हैं।

कुछ और क्षणिकाएँ

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एक पत्थर उछाल तो दिया है कस कर
कि करे सूराख उनके ऊँचे महलो में
और झरें उसमें से हमारे प्राप्य,
पर अगर नही कुछ हुआ तो समझ लेना
कि गिध्दों नें दबोच लिया है उसे,
ताकि वे फोड सकें, हमारे जतन से
सेये हुए अंडे, अपनी हवस के लिये।

बहुत चाहते हैं कि तुम्हें मिले सफलता
पहली ही बार में, व्यवस्थापन के नियम की तरह
अगर कर सको, हमेशा सही, हर बार, पहली ही बार
पर मत होना निराश अगर ऐसा न हो,
क्यूं कि असफलता ही सफलता की पहली सीढी है।

वे करेंगे हर कोशिश तुम्हें बदनाम करने की
पर जारी रहे ये संघर्ष, यह मन में रखते हुए
कि बदनाम वही किया जाता है जिसका कोई नाम हो।

स्वार्थों की होड लेकर,
सब से आगे दौड कर
लड रहे हैं वे सारे खास
सिर्फ आम आदमी के लिये।

जल्दी आना

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मंदिर के घंटियों की टुन टुन,
तुम्हारे भजन की गुन गुन
बना देती है दिन मेरा।

चाय के कप से उठती भाप
ठंड में उसका सुखद ताप
अद्भुत अहसास-ए-सवेरा।

गर्म नाश्ता ही सर्दी में
तुम्हारे नियम हिदायतें
मै बस नही तोडता।

शाम के चाय की प्याली
तुम्हारी ये अदा निराली
भाती है खूब मुझे।

जाना है तुम्हें पिता घर
मन को खुशी से भर
क्या अब होगा मेरा।

वापस जब तुम आओगी
घर को ऐसा ही पाओगी
तुमसे वादा है मेरा

वहां मन को ना लगाना
मेरी याद ना भुलाना
बस जल्दी आना।


Picture from Google with thanks.



जल्दी आना -2

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कल चले जाओगे सीमा पर
अपने कर्तव्य पूर्ति हित
अभिमान है तुम पर।

पर क्या करूं इन आखों का
इतना रोकने पर भी
आती हैं भर भर।

कितनी आयेगी तुम्हारी याद
तुम्हारे जाने के बाद
कैसे बताऊँ।

खबरों पर ही टिकी रहेंगी
जरा ना डिगेंगी
मेरी ये नजरें।


हर फोन, हर चिठ्ठी
हर मेल को तरसेंगी,
पनियाली आँखे।

दुष्मन को हल्के ना लेना
लोहे के चने चबवाना
रक्षा करना देश की।

विजयी हो कर आना
यहां की चिंता न करना
वापिस जल्दी आना।

वापसी

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वापसी हर बार दे जाती है एक नया सुकून
हर बार क्यूं लगता नया, मेरा पुराना सा शहर।

इसके रस्ते, पेड पौधे, बगीचे और बस्तियाँ,
हर बार दिल में हैं जगाते, हसरती कोई सहर।

दुनिया के रंगी नजारे नही देते वह खुशी
सांसें ज्यूँ इसके हवा की देती अहसासे इतर।

जो भी मिलता रास्ते पर बूढा बच्चा और जवान।
अपना दोस्त, अपना ही बेटा और पोता आता नजर।

अपने देश का खाना पीना अपने शहर की ये धूल
इसके आगे फीका अमृत, फिर क्या अमरीकी डिनर।
 
सोचना चाहती नही कि जब न लौट पाउंगी,
खुदा उतना ऊँचा उठाना, कि देख पाऊँ ये शहर।

कुछ कर पाते इसके लिये यह तो न हो सका हमसे
गान इसका कम से कम मेरे होठों पर रहे अगर।

 






चित्र गूगल से साभार।

हौसला रख

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राह निबिड गहन वन की, हौसला रख,
रात मेहमाँ कुछ पलों की, हौसला रख।

भोर का तारा उगा है, हौसला रख
जल्द फूटेगी किरण भी, हौसला रख।

मिहनत में जब कोताही ना की, हौसला रख,
अब प्रतीक्षा नतीजों की, हौसला रख।


घिर गया जो दुष्मनों से, हौसला रख,
मदद दोस्तों से मिलेगी हौसला ऱख.

चलते  रहने से ही मंजिल, हौसला रख
समय से होता है सब कुछ, हौसला रख।


कट ही जायेगा बुढापा, हौसला रख
ज्यूँ गये बचपन, जवानी, हौसला रख।

खुलेंगे अब दर सनम के, हौसला रख
वस्ले-सुबह के रंग खिलेंगे, हौसला ऱख।


चित्र गूगल से साभार।

शुभ नववर्ष

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खुल रही है एक नई किताब जिसका हर सफा है कोरा,
लिखना है हमें ही इसमें हर दिन का हिसाब हमारा।

कितनी की मक्कारियाँ कितने बोले झूठ
कितनों को लगाया चूना, किस पेड को बनाया ठूँठ।

कितनी फैलायी गंदगी नजरें सबकी बचाके,
कितने तोडे वादे, झूटे बहाने बनाके

कितना किया अपमान सज्जनों का
कितना निभाया साथ दुर्जनों का

क्या यही सब लिखना है इसमें,
और अंत में रोना पडेगा
या कि फिर हम चुनेंगे इक नई राह
जिस पर चल कर सुख मिलेगा।

इस राह पर मुश्किलें तो होंगी पर
पर दिवस का अंत सुखमय होगा
मनमें जगेगा विश्वास,
कर्तव्य पूर्ती का निश्वास होगा।

हम लायेंगे हँसी कई चेहरों पर,
पोछेंगे आंसू कई आँखों से
हम करेंगे मेहनत ताकि आगे बढें
और हमारे साथ सब आयें।

ले जायेंगे देश को खुशहाली के रास्ते पर
कदम दर कदम
साथ साथ चलेंगे आगे बढेंगे सभी हम।

पर इसका चुनाव करना है खुद हमें,
 ताकि किताब का अंत हो सुखद
और हम फिर सबसे सच्चे दिल से कहें
शुभ नव वर्ष।


सारे ब्लॉगर भाई बहनों को नववर्ष की हार्दिक बधाई।




सच्ची सरकार

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हर बार लगाई उम्मीद कुछ अच्छा होने की

न हुआ अब तक, अब तो कुछ हो जाये।

 

हरबार किया भरोसा हर शख्स के वादे पर,

अब कोई तो इन्साँ, वादा करके निभा जाये।

 

झूट और मक्कारी की दुनिया है बहुत देखी

अब तो दीनो-ईमान की दुनिया नजर आये।

 

बहुत दिन जी लिये फुटपाथ औ सडकों पर,

सर पे हमारे भी अब एक छत तो बन जाये।

 

रोटी कपडा मकानों के वादे सुन लिये बहुत,

दो वक्त का निवाला तो हर-एक को मिल जाये।

 

हमारे नौनिहाल भी इसी देश के बच्चे हैं,

उनके भी लिये पढने की व्यवस्था तो हो जाये।

 

चुनाव तो हो जायेंगे, नारे होंगे ठंडे,

इस देश को अब सच्ची सरकार तो मिल जाये।

नया दिवस

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मंद सौम्य उज्वलता उसकी
झरती, नभ से धरती पर

उसमें फिर दिखने लगते हैं
रजकण औ उत्तुंग शिखर।

सुखद अनुभूति लगे व्यापने
शरीर और मन के अंदर,

हलका हलका सा धुंधलका
सरकने लगता ज्यूँ चादर।

फिर छाने लगती ऊषा की
लज्जा नभ की छाती पर

लाल सुनहरी भोर छमाछम
आती आंगन के अंदर

इक नये दिवस का  उदय
हो जाता इस धरती पर।



आस हरियाली रहे

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आसमाँ पे जो हुकूमत बाज़ और गिध्दों की हो,
शान्ति के नन्हे परिंदे बोलो फिर जायें कहाँ।

आस पे ही अबतलक जिंदा रहे थे हम सनम,
तुम जो ना आने की ठानों, बोलो तब जाये कहाँ।

स्कूलों में महफूज़ हैं बच्चे यही सोचा किये,
वहीं गोली चलने लगे तो बच्चे फिर जायें कहाँ।

जिंदगी का आजकल कोई भरोसा ना रहा,
सुबह का निकला न लौटे शाम, तब जाये कहाँ।

अच्छे दिन अब आ रहे हैं कितना तो सुनते रहे,
जाने कहाँ वो छुप रहे हैं उनको हम पाये कहाँ।

गणतंत्र बनने का जशन हर साल मनता है यहाँ
जन के लिये जो तंत्र है, उसको हम जानें कहाँ।

आस पर कायम है दुनिया इसको दें ना टूटने,
आस हरयाली रहे, आबाद सपनों का जहाँ।



छोटी बातों में

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छोटी बातों में बडा दम है,
बडों के पास बडा अहम है।

हमने कब किसीसे होड करी
जो है हम पे वो भी क्या कम है।

सवाल तो बस टिके रहने का है
चमकार तो केवल भरम है।

रूप पे इतना दंभ क्यू गोरी
माना के अभी तेरा परचम है।

सूरतें तो बदल ही जाती हैं
इल्मो-सीरत का हम पे भी करम है।

इन्सां की शक्ल भेडिये का दिल
जो दिखाये न रब वही कम है।

जिस जनता की करनी है सेवा
लूटते उसी को बन के हमदम हैं।

अब जो भी आयेंगे आगे
देखते हैं सख्त या नरम हैं

मैं भी क्या करूं न कैसे लिखूं,
मेरे पास भी तो कलम है.



चित्र गूगल से साभार।

प्यार

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प्यार होता है कब, कहाँ, कैसे,
खिल सा जाता है दिल कली जैसे।

मन में एक रागिनि लहराती है
हवा भी खुशबूएँ सी लाती हैं,
धूप में चांदनी नहाती है।
मौसम भी हो रहा भला जैसे।

कब कैसे कोई मन को भाता है,
बिन उसके कुछ नही सुहाता है,
कैसे यकायक से सब बदलता है,
सपना साकार उठा हो जैसे।
उसके ना दिखने से वो बेचैनी,
बात ना करने पे परेशानी,
और अपनी कैसी कैसी नादानी,
होके मन बावला फिरे कैसे।

रात अपनी ना ही दिन अपने,
मन में खिलते हजारों में सपने,
उसकाही नाम बस लगे जपने,
अजनबी खुद से हो लिये जैसे।


वही अपना खुदा, वही भगवान,
उसके मुस्कान पे जहाँ कुर्बान,
उसकी बातें ही गीता और कुरान
धरम और करम सब पिया जैसे।

क्या कहें प्यार कैसे होता है,
बस इक बुखार जैसे होता है
ये कभी ना कभी उतरता है,
तब सब बचपना से लगता है
मोड से आगे बढ जाना जैसे।

चित्र गूगल से साभार।


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